नो टू चायना ने फिर पकड़ा जोर

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चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है और हम भी अपनी आदतों से मजबूर है। हम चीनी सामानों के बहिष्कार की बात अवश्य करते है और सोशल मीडिया पर गर्जना करने से बाज नहीं आते मगर अपनी कथनी और करनी को नहीं देखते। हाल ही एक चीनी कम्पनी ने अपना टीवी बाजार में लांच किया तो हजारों ग्राहक खरीदने को उमड़ पड़े। ऐसे में चीन को सबक सिखाना संभव नहीं है। जब तक अपनी कथनी और करनी का भेद समाप्त नहीं करेंगे तब तक चीन का मुकाबला नहीं कर पाएंगे।
चीन की विस्तारवादी नीति किसी से छिपी नहीं है। वह गाहे बगाहे भारतीय भूमि पर कब्जे की कोशिशें करता रहा है। डोकलाम में मुंह की खाने के बाद अब लद्दाक सहित विभिन्न सीमाई क्षेत्रों पर कब्जे का प्रयास कर रहा है। इसी कारण एक बार फिर चीन को सबक सिखाने की सियासत गरम हो उठी है। चीनी सामानों के बहिष्कार की जंग एक बार फिर उबाल पर है। बाबा रामदेव सहित अनेक जाने माने लोगों ने चीनी सामानों की बहिष्कार की अपील की है। देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनने के बाद लगातार चीनी सामानों के बहिष्कार की मांग जोर पकड़ रही है। भाजपा के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन भी चीन को सबक सिखाने पर उतारू है। अमूल कूप ने हाल ही में अपने ट्विटर अकाउंट से एक ट्वीट किया जिसमें चीन के बने सामान खासकर टिकटॉक एप का बहिष्कार करते हुए दिखाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने उद्बोधनों में लगातार लोकल यानी स्थानीय उत्पादों की खरीद और उसके लिए आग्रह और प्रोत्साहन की बात कर रहे हैं। पूरी दुनिया में चीन के प्रति गुस्सा व्याप्त है। सारी दुनिया में चीनी माल के बहिष्कार का माहौल है। भारत में भी अधिकांश लोग चीनी माल के बहिष्कार का संकल्प ले रहे हैं। लद्दाख के सुप्रसिद्ध नागरिक सोनम वांगचुक के चीनी माल के बहिष्कार के संदेश ने तो जैसे चीन के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा कर दिया है। लोग चीन के माल का बहिष्कार तो कर ही रहे हैं, चीन से आने वाले खतरों के प्रति आगाह भी कर रहे हैं। भारतीय विकल्पों के सुझाव भी दे रहे हैं और सरकार से चीनी आयात रोकने की गुहार भी लगा रहे हैं। चीनी कंपनियों को सभी टेंडरों से बाहर रखने की मांग जोर पकड़ने लगी है। चीन के बहिष्कार और आत्मनिर्भरता का विचार मानो पर्यायवाची बन गए हैं। दूसरी तरफ भारत में चीनी सामान के बहिष्कार से चीन में उसकी घबराहट साफ देखी जा सकती है। चीन ने कहा है कि भारतीय मुश्किल से ही चीन के सामानों का बायकॉट कर सकते हैं।
यदि हम चीन के साथ व्यापार घाटा देखते हैं तो उसमें 2017-18 के बाद से गिरावट आ रही है। 2017-18 में यह 63 अरब डॉलर था, जो 2018-19 में घटकर 53.6 अरब डॉलर और अब 2019-20 में 48.6 अरब डॉलर हो गया। ये आंकड़े लोगों द्वारा आंशिक बहिष्कार और अतीत में सरकार द्वारा कुछ उपायों का परिणाम है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने 10 जून से देशभर में चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान चलाया है। सात करोड़ व्यापारियों और 40,000 व्यापार संघों का प्रतिनिधित्व करने वाला यह संगठन न केवल व्यापारियों को चीनी सामान से दूरी बनाने के लिए प्रेरित करेगा, बल्कि लोगों से स्वदेशी उत्पादों को अपनाने का आग्रह भी करेगा। इस अभियान के माध्यम से दिसंबर 2021 तक चीनी वस्तुओं के आयात में लगभग $13 बिलियन (लगभग 1 लाख करोड़ रुपये) की कमी लाने का प्रयास किया जाएगा। केट ने चीन से आयातित लगभग 3,000 ऐसे उत्पादों की एक व्यापक सूची तैयार की, जिनके विकल्प भारत में आसानी से उपलब्ध हैं
मिली जानकारी के अनुसार साल 2018-19 में भारत ने चीन से 4.92 लाख करोड़ का सामान आयात किया। तो बदले में भारत ने चीन को सिर्फ 1.17 लाख करोड़ का सामान निर्यात किया। यानी भारत को 3.75 लाख करोड़ का व्यापार घाटा हुआ। मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक श्गेटवे हाउसश् ने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का निवेश हैचीन ने भारत में छह अरब डॉलर से भी ज्यादा का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रखा है। साल 2018-19 के वित्तीय वर्ष में देश की फर्मों ने चीन से 2.4 अरब डॉलर मूल्य की दवाइयां और एपीआई आयात किए। पिछले कुछ दशकों में भारत और चीन के बीच व्यापार बढ़ता गया। इसी के साथ चीन की भारत में हिस्सेदारी भी बढ़ती गई। साल 2001-2002 में दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार महज तीन अरब डॉलर का था जो 2018-19 में बढ़कर 87 अरब डॉलर पर पहुंच गया।
अगर चीन के सामान का बहिष्कार करना है तो खुद के सामान को सस्ता बेचना होगा। उसे लोगों की पहुंच तक ले जाना होगा। लोग खुद-ब-खुद अपने घर का सामान खरीदना शुरू कर देंगे। दीया बनाने और फिर उसे बेचने में कितनी मुश्किलें हैं इसे सरल करना होगा और किसी भी थोक की दुकान से ज्यादा सामान खरीदकर छोटी दुकान में आसानी से बेचने के अंतर को अगर नहीं समझेंगे तो शायद ऐसे ही तुलना करेंगे जैसे कि अभी कर रहे हैं।