जायकेदार जिंदगी के हमसफर थे महाशय धर्मपाल

मसालों के बादशाह एमडीएच ग्रुप के मालिक महाशय धर्मपाल जी का गुरुवार को स्वर्गवास हो गया। वे 98 साल के थे। टीवी पर आपने एमडीएच मसाले का विज्ञापन जरूर देखा होगा और इसमें मसालों की दुनिया के बादशाह कहे जाने वाले बुजर्ु्ग महाशय धर्मपाल गुलाटी भी देखे होंगे। धर्मपाल गुलाटी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। भारत में ऐसा एक भी घर नहीं है जहाँ इनकी पहुँच न हो। इनके जायकेदार मसालों से आपकी रसोई हर समय महकती मिलेगी। आज इनके बनाये एमडीएच मसाले हर घर की रसोई की पहचान है। कभी तांगा चलाकर पेट भरने को मजबूर ये महाशय आज दो हजार करोड़ रुपयों के बिजनेस ग्रुप के मालिक थे। एमडीएच की वेबसाइट के मुताबिक, धर्मपाल गुलाटी एक समय पर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड और करोल बाग से बारा हिंदू राव तक तांगा चलाते थे। उस दौरान प्रति सवारी दो आना मिलता था।
धर्मपाल गुलाटी भारत के एक सफल उद्यमी तथा समाजसेवी थे। एम डी एच (महाशिया दी हट्टी) मसाले उनके ही उत्पाद हैं। इनका जन्म सियालकोट में,हुआ था। भारत-पाकिस्तान बटवारे के बाद भारत आकर इन्होंने दिल्ली में करोल बाग से अपना व्यापार प्रारंभ किया। महाशय धर्मपाल गुलाटी के पिता महाशय चुन्नीलाल की सियालकोट में महाशय दी हट्टी नाम से दुकान थी। इसी महाशय दी हट्टी से आया है एमडीएच। दुनिया को अपने सर्वश्रेष्ठ दो और सर्वश्रेष्ठ स्वमेव ही आपके पास वापस आएगा। व्यवसाय में अटूट लगन, साफ दृष्टि और पूरी ईमानदारी की बदौलत महाशयजी का व्यवसाय ऊंचाइयों को छूने लगा। भारत में एमडीएच मसालों के विज्ञापनों और डिब्बों पर उनकी तस्वीर की वजह से उन्हें काफी पहचान मिली थी। उन्हें व्यापार और वाणिज्य के लिए साल 2019 में भारत के दूसरे उच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी नवाजा गया था।
धर्मपाल जी को गाहे बगाहे दिल्ली के करोलबाग इलाके में देखा जा सकता था। उन्हें करोलबाग में नंगे पांव घूमते बहुत से लोगों ने देखा था। इसकी वजह उन्होंने अपने एक दोस्त को बताते हुए कहा, काके, करोल बाग में जब भी आता हूं तो जूते-चप्पल पहनकर नहीं घूमता। मेरे लिए करोल बाग मंदिर से कम नहीं है। इसी करोल बाग में खाली हाथ आया था। यहां पर रहते हुये ही मैंने कारोबारी जिंदगी में इतनी बुलंदियों को छूआ। उन्होंने तांगा चलाने से लेकर मसाले कूटने के तमाम काम किए। इसे वे एक तरह से तीर्थस्थल ही मानते थेैं। महाशय धर्मपाल ने जिंदगी में कई उतार चढ़ाव देखे। शुरुआती दिनों में उन्होंने सदर बाजार से पहाड़गंज तक तांगा भी दौड़ाया और उसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे अपने को स्थापित कर लिया।
वे खुद ही बताते थे कि उनका मन पढ़ाई में तो लगता नहीं था, इसलिए बचपन से ही छोटे-मोटे काम करने लगे। सन 1947 में देश के बटवारे में वे 1500 रुपए लेकर भारत आ गए। वे कहते हैं कि एक दिन वे अपने पिताजी के साथ एक दूकान में गए। वहां मसालों का बड़ा काम होता। उसी दिन उन्होंने तय कर लिया कि मसाला बनाने का धंधा करेंगे। फिर उन्होंने मसाला बनाना प्रारंभ कर दिया अपने करोलबाग के घर में ही। उसे वे खुद ही बेचने लगे दुकान-दुकान जाकर। उसके बाद जो हुआ उसे बताने की जरूरत नहीं है। मसाले के छोटे से काम से आज उनका काम देश-विदेश में फैल चुका है। महाशय धर्मपाल ने अपने माता पिता के नाम पर कई अस्पताल और अन्य संस्थाए खोली हैं। आज उनकी कंपनी के मसालों का अमरीका , कनाडा ,ब्रिटेन ,यूरोप , जापान समेत अनेक देशों में निर्यात होता है।
एमडीएच ब्रांड मसाले अपनी शुद्घता और गुणवत्ता को लेकर पूरे भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई दूसरे देशों में भी प्रसिद्ध हो गए। वे स्वयं अपनी कंपनी के विज्ञापनों में आना पसंद करते हैं। आपने उन्हें अखबारों और टीवी पर अपने विज्ञापनों में बड़े मस्त भाव से प्रचार करते जरूर देखा होगा। आज एमडीएच कंपनी 100 से ज्यादा देशों मे अपने 60 से अधिक प्रोडक्ट्स बेच रही है। यह मसाले बनाने के लिए लगनेवाली सामग्री केरल, कर्नाटक और भारत के अलग अलग हिस्सों से आती है। कुछ सामग्री ईरान और अफगानिस्तान से भी लायी जाती है। एमडीएच की सफलता के पीछे छुपी मेहनत का नतीजा है की 95 साल की उम्र में धरम पाल जी भारत में, 2017 में सबसे ज्यादा कमाने वाले थ्डब्ळ सीईओ बने।
महाशय धर्मपाल पक्के आर्यसमाजी थे। वे राजधानी और देश की अनेक संस्थाओं से भी जुड़े थे। वे कहते थे कि एमडीएच के लाभ का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक कार्यों में खर्च होता है। उनकी मां चन्नन देवी के नाम से राजधानी के जनकपुरी में चलने वाले अस्पताल में गरीब रोगियों का मुफ्त इलाज होता है। मानवता की सेवा करने से वे कतई नही चूकते, वे हमेशा धार्मिक कार्यो के लिये तैयार रहते है।
महाशय जी मानते थे कि जिंदगी में कामयाबी के लिए छह मंत्र हैं – ईमानदारी , मेहनत ,ईश्वर में विश्वास, माता पिता का आशीर्वाद, मीठा बोलना और सबका प्यार पाना। वह सामाजिक कार्यक्रमों में खूब भाग लेते थे और वहां भंगड़ा भी कर लेते । सफेद कपड़े ,लाल पगड़ी और मोती की माला उनके व्यक्तित्व के हिस्से थे। बेशक महाशय धर्मपाल गुलाटी का जीवन मिसाल है उन सभी के लिए जो जीवन में अपने लिए नई इबारत लिखना चाहते हैं।
(लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार एवं पत्रकार हैं)
