भारत चीन संबंधों में खार के मायने
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भारत और चीन के संबंध जैसा कहा जाता है वैसा असल में है नहीं। हिंदी चीनी भाई भाई ये कहावत बचपन से ही सुनी होगी लेकिन जमीनी हकीकत इन बातो से बिल्कुल परे है। भारत और चीन के बीच चल रहे लद्दाखी क्षेत्र सीमा विवाद कोई नई बात नहीं है। चीन सालो से भारतीय सीमा में हस्तक्षेप करने की कोशिश करता रहा है।
एक तरह से देखा जाए तो चीनी सरकार को बढ़ावा देने में हम सब भी पूरी पूरी तरह भागीदार हैं, क्योंकि बात यह है कि बिन पैसे मोती नहीं मिलते और फिर हम तो चीन के व्यापार का एक बहुत अहम हिस्सा है लेकिन जरा सोचिए जो भारत चीन का लोकप्रिय और अहम ग्राहक है फिर भी सीमा विवाद और कई अंतरराष्ट्रीय फैसलों में भारत के खिलाफ कैसे खड़ा रहता है। माना तो ऐसा भी जाता है कि जब जब चीनी लोगों में सरकार के खिलाफ कोई आवाज सुनाई देती है या उसे लगता है कि उनके लोगो का सरकार के प्रति विश्वास कम होने लगा है तब तब वहां एक राषट्रवादी सोच को लोगो के सामने पेश कर दिया जाता है यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे हमारी सरकार बालाकोट और सर्जिकल स्ट्राइक को अपने चुनावी हथकंडों के लिए प्रयोग कर चुकी हैं। यह सब खासकर असल मुद्दों को दबाने के लिए अपनाए जाते है जिससे लोग असली मुद्दे जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, रोटी, कपड़ा और मकान को भुल बस देशभक्ति का अलाप जपते रहे और सरकार बिना किसी कठिनाई के अपने हिसाब से चलती रहे। चीन को अब यही डर सताता है और आप देख ही रहे है कि कैसे हांगकांग और ताइवान भी अब चीन से दूर होना चाहते है दरसअल वे सभी चीनी सरकार के रूढ़िवादी रवैयो से परेशान है।
पिछले कुछ दिनों लद्दाख के जाने माने भारतीय इंजिनियर सोनम वांगचुक के वीडियो सोशल मीडिया पर ज्यादा वायरल हो रहे है उन्होंने सीमा पर हो रही चीन के साथ तना तनी को बहुत बेहतर रूप से लोगो के सामने रखा है और चीनी सरकार को आगाह करने के लिए सभी भारतीयों से यह गुजारिश की वे चीन के समान का बहिष्कार कर स्वदेशी उत्पादों का व्यवहार करे और साथ ही यह भी कहा है कि शुरुवात में यह संभव ना हो क्योंकि हमारे पास विकल्प नहीं है किन्तु अगर सब एक माहौल बनाए तो फिर भारतीय कंपनियां भी स्वदेशी उत्पादों का निर्माण करने में सक्षम हो सकती है। हो सकता है कि आप इस आर्टिकल को पढ़ते वक्त किसी चीनी फोन या लैपटॉप का ही व्यवहार कर रहे हो पर चिंता ना करे आदत बदलने में समय लगता है।
इकनॉमिक टाइम्स के एक आंकड़े के मुताबिक अप्रैल से दिसंबर के बीच भारत ने चीन से $64.96 बिलियन का व्यापार किया जो की अमेरिका से कुछ कम था पर समस्या यह है कि हम अमेरिका में व्यापार करते समय निर्यात ज्यादा करते हैं और चीन से कहीं ज्यादा आयात करते है इसीलिए हमें कई बार जूते मोजे भी मेड इन चाइना ही मिलते है, इसमें कुछ लोग राय देते है कि हमें पूरी तरह से चीनी सामान पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए यह सुनने में हो सकता है अच्छा हो पर बहुत नुकसानदेह भी होगा क्योंकि अगर चीन के समान भारत में अचानक से बंद हो जाए तो इससे बड़े कॉरपोरेट से लेकर ठेले पर खिलौने बेचने वाले भी बेरोजगार हो जाएंगे और गरीबी में आटा गीला हो जाएगा। तो बेहतर है कि बातचीत के रास्ते चीन के सीमा विवाद को रोका जाए और सरकार को भारतीय उद्योगों को आगे बढ़ाने और प्रोत्साहित करने के लिए नई नीतियां बनाई जाए जिससे कि भारत के युवा बेरोजगारों को रोजगार मिल सके और हमारा देश प्रगति की राह में बढ़े।
