फिर बोतल से बाहर आया लिव इन का जिन्न

सुशांत सिंह राजपूत और उनकी गर्ल फ्रेंड रिया चक्रवर्ती के लिव इन रिलेशन इन दिनों सुर्खियों में है। विशेषकर सुशांत की मौत के बाद लिव इन रिलेशन का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। महिला-पुरुष का बगैर विवाह के एक साथ रहने की व्यवस्था को लिव इन रिलेशनशिप कहा जाता है। सुशांत की मौत से पहले रिया ने उनका घर छोड़ दिया था और वे अपनी घर शफ्टि हो गई थीं। रिया ने सुशांत संग लिव-इन में रहने की बात कुबूल की है।
हालाँकि बॉलीवुड में लिव इन रिलेशन आम बात है। यहाँ हम बॉलीवुड के उन सितारों की बात कर रहे है जो लिव इन रिलेशन में रहे है। इनमें जॉन अब्राहम- बिपाशा बसु, राहुल देव-मुग्धा गोडसे, रणवीर शोरे-कोंकणा सेन शर्मा, ट्यूलिप जोशी- विनोद नायर , सुशांत सिंह राजपूत-अंकिता लोखंडे, लारा दत्ता-केली दोरजी, राजेश खन्ना- अनीता आडवाणी, सोहा अली खान- कुणाल खेमू , सैफ अली खान-करीना कपूर खान, आमिर खान- किरण राव, बोनी कपूर-श्रीदेवी, अभय देओल-प्रीति देसाई आदि के लिव इन रिलेशन के चर्चे आम रहे है। लिव-इन में रहे बॉलीवुड के इन सितारों में से किसी ने शादी की तो किसी का रिश्ता टूट जाने से वे अलग हो गए।
पाश्चात्य कल्चर को फॉलो करते हुए भारत में भी लिव-इन रिलेशनशपि आम हो गया है महानगरों में कई लोग शादी से पहले लिव-इन में रहते हैं। बड़े शहरों में लिव इन रिलेशन का कॉन्सेप्ट युवाओं को बहुत भा रहा है, मगर ऐसे रिश्तों का अंत सुखद ही हो जरूरी नहीं है। पाश्चात्य देशों की नकल पर बना एक विवादास्पद लेकिन आधुनिक लाइफ जीने के लिए यह एक अनूठा और दिलचस्प रिश्ता है जिसमें शादी की पुरानी मान्यता को दरकिनार करते हुए जोड़े साथ रहते है। लिव-इन रिलेशनशिप की शुरुआत महानगरों के शिक्षित और आर्थिक तौर पर स्वतंत्र ऐसे लोगों ने की थी जो विवाह संस्था की जकड़ से छुटकारा चाहते थे और उसी तरह से अपनी जिम्मेदारी एक दूसरे के लिए निभाते है जैसे वो शादी करने के बाद करते। इन संबंधों में खास बात यह है की वे किसी नैतिक दवाब का सामना नहीं करते। ऐसे लोग जब चाहे तभी एक दुसरे से अलग हो सकते है।
लिव-इन रिलेशन जायज है या नाजायज इस पर लंबे समय से बहस चल रही है। लिव-इन रिलेशन को लेकर भारत में अलग से कोई कानून नहीं हैं। इसलिए आपसी समझ से बने बालिग स्त्री-पुरुष के बीच लिव-इन रिलेशन को नाजायज नहीं ठहराया जा सकता। ये बात कई बार देश की अदालतें साफ कर चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप के हक में एक फैसला सुनाते हुए कहा था कि अगर दो वयस्क व्यक्ति आपसी रजामंदी से शादी के बगैर साथ रहते हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं है। यह अपराध नहीं है। साथ रहना जीवन का अधिकार है।
विवाह को हमारे देश भारत में धार्मिक भावना से जोड़कर देखते है जिसमे अपने जीवनसाथी के साथ जीवनभर के लिए वफादार रहने का प्रण लेते है और इसे इतना पवित्र और खास समझे जाने के पीछे महिला की सुरक्षा निहित है। लिव इन की खिलाफत करने वाले कहते है ज्यादातर लिविंग रिलेशन उन युवाओं में पाए गए हैं जो घर से दूर रह रहे हैं। उनके परिवार वालों को इस रिश्ते की कोई खबर नहीं होती। लिविंग रिलेशन में रह रहे लड़के-लड़कियां अपने मां-बाप या घरवालों से अपने रिश्ते को छुपाकर रखते हैं। जब रिश्ता बिगाड़ की श्रेणी में आजाता है तब इसका भांडा फूटता है। भारत का समाज रिश्तों के कई डोर में बंधा हुआ है जो ऐसे रिश्तों को जायज नहीं मानता।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लिव इन रिलेशनशिप आज शादी का झांसा देकर शारीरिक शोषण का जरिया बन रहा है, जिसकी चंगुल में युवतियां फंस रही हैं। शादी से पहले लिव इन में रहने की वकालत करने वाले ऐसे लोग भोली-भाली लड़कियों से फेक मैरिज सर्टिफिकेट दिखाकर उन्हें ठग रहे हैं। इसके अलावा पैसे ऐंठने और शारीरिक शोषण के बाद उनकी तस्वीरें वायरल करने के भी मामले आ रहे हैं। इस तरह के मामलों की संख्या पिछले एक साल में महिला आयोग और महिला हेल्पलाइन में बढ़े हैं।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की एक सर्वे रिपोर्ट में जाहिर किया गया था की विवाह की डोर से बंधी महिला ज्यादा खुश है बनिस्पत लिविंग रिलेशन के। बहरहाल जिस तेजी से जमाना बदल रहा है वह हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक व्यवस्था पर चोट पहुँचाने वाला तो है मगर देखने वाली बात यह है हमारे युवा अपनी खुशियों को कैसे एक दूसरे में बाँट कर समाज के साथ साथ अपने रहन सहन को सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक तौर मजबूती प्रदान करते है।
(लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार हैं)
