माया मिली न राम

राजस्थान का सत्ता संग्राम

बाल मुकुंद ओझा

राजस्थान के सत्ता संग्राम में किस की जीत हुई और कौन हारा , इस पर गहन बहस छिड़ गयी है। जानकर कह रहे है प्रदेश की जनता की हार हुई है। आज़ादी के बाद यह पहला मौका था जब बहुमत प्राप्त सत्ता पार्टी को अपनी सरकार की रक्षा के लिए बाड़ाबंदी का सहारा लेना पड़ा। वह भी पूरे एक महीने। इससे भी ज्यादा आश्चर्य तब होता है जब कांग्रेस पार्टी के आपसी झगडे का दोष भाजपा पर मढ़  दिया जाता है। इस दौरान विधायकों के ऐशोआराम पर करोड़ों रूपये फूंक दिए जाते है। ये पैसे कहाँ से आये। सीएम गहलोत कहते है बागियों पर मानेसर में भाजपा ने पैसे खर्च किये हालाँकि सचिन पायलट इससे इंकार करते है। गहलोत खेमे पर भी भारी भरकम धनराशि स्वाहा हुई , हिसाब तो उसका भी जनता को बताना होगा। यह कांग्रेस का ग्रेट पोलिटिकल ड्रामा था इससे कोई भी मना नहीं कर सकता।इस ड्रामे में थ्रीलर ,सस्पेंस और ड्रामा सभी कुछ था।
एक प्रश्न यह भी पैदा होता है की इस सत्ता संग्राम में भाजपा को क्या हासिल हुआ है। गहलोत ने इस पूरे ड्रामे के षड़यंत्र के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है। अब उन्हें इस षड़यंत्र के भंडाफोड़ के लिए पायलट करनी चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। आलाकमान को भी भाजपा के षड़यंत्र के बारे में पूछना चाहिए। मगर कहते है हमाम में सब नंगे है इसलिए ज्यादा कुछ कुरेदना ठीक नहीं है।
एक बात और है जो जनता जानना चाहती है। यह पेचआप आखिर कितने दिन चलेगा। इसे कांग्रेस की जीत तो कहा नहीं जायेगा। भाजपा पर आरोप लगाने से काम
चलेगा। कांग्रेस के दोनों धड़े इसे सत्यमेव जयते कहते है। भाजपा को अब नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार करनी होंगी क्योंकि कांग्रेस की यह एकता अब ज्यादा दिन चलने वाली नहीं दिखती। गहलोत खेमे के विधायकों ने खुलमखुला अपनी नाराजगी व्यक्त की है वहीँ पायलट खेमे के विधायक भी गहलोत की कारगुजारी से खुश
नहीं है। इसका सीधा सा अर्थ है दोनों धड़ों की ज्वाला अंदर ही अंदर धधक रही है जो कभी भी फूट कर बाहर आ सकती है।
सच तो यह है पायलट गुस्से में थे और अशोक गहलोत को सबक सिखाना चाहते थे।उन्होंने बीजेपी से भी हाथ मिला लिए। यह कहा जाने लगा कि सचिन पायलट अशोक गहलोत की सरकार सरकार गिराएंगे और बीजेपी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बनेंगे। मगर इस बीच इन के 3 साथी चेतन डूडी, रोहित बोहरा और दानिश अबरार
दिल्ली के पंडारा रोड थाने का बहाना बनाकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास जयपुर पहुंच गए और सारा प्लान धरा का धरा रह गया। गहलोत और पायलट के हाथ
क्या लगेगा यह तो पता नहीं पर जानकारों का कहना है कि दोनों नेताओं का अहम इतना बड़ा है कि सियासी झगड़े में इस पड़ाव को बस युद्ध विराम की संज्ञा दे सकते हैं। कोंग्रेसी सूत्रों की माने तो पार्टी आलाकमान ने 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले मुख्यमंत्री बनाने का भरोसा दिया है।यहीं नहीं, उन्होंने पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनने का भी प्रस्ताव है। एक महीने की बाड़ाबंदी में यदि किसी को नुक्सान हुआ है तो वह राजस्थान की जनता है, जिसके कोरोना काल में कल्याणकारी कार्य और विकास पूरी तरह ठप्प हो गया।