मेरा भारत महान

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वह सत्यस्वरूप परमात्मा एक है, जिसे हम सभी अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। उस एक को जानने-पहचानने और उसकी उपासना करने से सभी प्रकार की वासनाएं मिटती हैं और पवित्र भावनाएं प्रकट होती हैं। परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान और सत्य है। वह सर्वत्र व्याप्त है।
मन की खुशी का आज कोई ठिकाना नहीं सच मानों तो मेरे भारत का फिर से भाग्य उदय हुआ हैं। मेरे भारत के भरत फिर से जाग गए है। मानों हम जिस परमात्मा को मानते है. वह परमात्मा सब जगह सब समय रीति से परिपूर्ण हैं। केवल यह विश्वास कर लें. परमात्मा विश्वास से मिलते हैं। मन की वही तू ढ़ूंढ़ ले बंदे. मैं तो तेरे पास रहूं देख बंदे।जिसको तू ढ़ूंढना चाहे मैं तुरंत मिल जाऊं. कण कण की तलाश में मैं मिल मिल तुरंत जाऊं। अगर हम यह मान ले. विश्वास कर लें. स्वीकार कर लें. धारणा कर लें कि परमात्मा सब जगह है तो बहुत सुगमता से परमात्मा की प्राप्ति हो जायेगी।संसार की प्राप्ति परिश्रम करने से होती है. पर परमात्मा की प्राप्ति बिना परिश्रम के स्वतः स्वाभाविक हैःक्योंकि परमात्मा अप्राप्त है इस मान्यता को मिटाना ही नित्य प्राप्त की प्राप्ति हैं। मानने लायक एक परमात्मा ही है. और कोई मानने के लायक नहीं हैं। संसार जाना जाता है.माना नहीं जाता। संसार को जानना यही है कि हमारी कोई चीज नहीं हैं।
पाँच अगस्त बस निश्चित समय था. जो इस तरह बीतता गया मगर समय जो उसका तय किया गया है. वह सृष्टि के उथल पुथल कर जाने कि एक प्रक्रिया बनी और चलता गया समय के उदगम का दौर जो राम की जन्म भूमि से उत्पन्न होकर ऐसा चला कि पाँच सौ वर्षौ तक भूमि के उत्थान के विषय का माहौल बनकर चला चलता गया। जैसे भगत प्रहलाद की भक्ति को जब तक चरम सीमा तक पहुंचने का अवसर पूरा ना मिला उसी तरह भारत इन भरतों को रस ना आया तब तक राम जन्म भूमि पर राम मंदिर बनने का वो मुहूर्त ना बना।पर भारत की भूमि पर सदा ही देव रमन करने आते रहे हैं। और उन्हें लगा कि इस धरती पर अभी भी इंसान भक्ति का रस पान करते है. यही सची देखो आस्था है. जो फिर से राम जन्म भूमि पर राम अवतरित हुए हैं। मानो फिर से दरबार उनका लग गया है. जो एक कलयुग में अविस्मरणीय मेरे भारत का इतिहास बनने को तैयार है. जो कि दो हजार बीस का साल सम्बत 2077की पुण्य तिथि द्बितीय ऋतु वर्षा काल भाद्रपद तय किया हैं। जो स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया. पाँच अगस्त ये पाँच नहीं यह साक्षात राम का कोरोना महामारी में पंचमुखी रुप कहलायेगा। रामायण का यह बहुत ही सुंदर स्वरूप देखने को मिला है राम मंदिर का यह इतिहास न ई सदी का लिखा हमसब जो कुछ समझसके उतना यही हैं कि भूमि पूजन नहीं ये साक्षात उस सृष्टि के करता धरता कि है. इसके खातिर जाने कितनी माताओं के खून से जले दीप तूफानों में जल जल बूझे मंदिर के गुम्बज पर चढ़कर अपनी जान देने वाले महारथी शरद कोठारी रामकुमार कोठारी बन्धुओं ने गोली खाकर अपना नाम अमर कर दिया।वो ही नहीं कुछ ऐसे नाम भी नहीं जानते सैकड़ों है जो गुमनामी के उजाले में जाने अपना मोक्ष पा चुके है. जिन्होंने अपनी जान राम नाम पर ही गवाई थी।इसी पाँच अगस्त के खातिर लाल कृष्ण अड़वानी जैसे पुरुषने बहुत कुछ झेला वर्षों तक ना भूला पायेगा. इस सघर्ष को क ई पीढियां आगे भी जीवन उत्सर्ग को याद करते रहेंगे। राम हमारे लिए जीवन की दृष्टि है. बस उतना ही राम भक्ति रस का दूसरा नाम है. ये सुनहरा दीप प्रज्वलित कर अविस्मरणीय भारत का इतिहास बन गया।