भारतीय भावनाओं के गीतकार थे पं. भरत व्यास

बाल मुकुंद ओझा

मशहूर गीतकार प. भरत व्यास किसी परिचय के मोहताज नहीं है। अपने लिखे गीतों से देश और दुनिया में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले चूरू के गीतकार पंडित भरत व्यास अपने ही गृह क्षेत्र में गुमनाम से हो गए है। विरासत के रूप में उनके पुरखों की हवेली आज भी चूरू में विधमान है। भरत व्यास हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार थे और उन्होंने 17-18 वर्ष में ही कविता लिखना शुरु कर दिया था। 1942 के बाद वह मुम्बई आ गए और उन्होंने फिल्मों में अभिनय भी किया लेकिन उन्हें गीतकार के तौर पर ही जाना जाता है। उनके द्वारा रामू चनना नामक नाटक भी लिखा गया।
चूरू के पुष्करणा ब्राह्मण परिवार में 6 जनवरी 1918 को जन्मे भरत व्यास जब दो वर्ष के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया और इस तरह कठिनाइयों ने जीवन के आरंभ में ही उनके लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर दी। लोक संस्कृति शोध संस्थान, नगरश्री चूरू के संस्थापक स्व सुबोध अग्रवाल ने सातवें दशक में चूरू में भरत व्यास के कृतित्व और व्यक्तित्व पर एक चित्र प्रदर्शनी लगायी थी। अग्रवाल के अनुसार भरत जी बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे और कविता के प्रति उनका लगाव हो गया था। चूरू में वे लगातार रंगमंच पर सक्रिय थे और एक अच्छे रंगकर्मी के रूप में उनकी पहचान भी बनी। उन्होंने अपने गीतों से चूरू को देशभर में पहचान दिलाई। भरतजी ने प्रारंभिक शिक्षा चूरू में ही प्राप्त की और और आगे की पढाई के लिए बीकानेर चले गए। भरत व्यास डूंगर कॉलेज बीकानेर में वॉलीबाल टीम के कप्तान भी रहे।
बीकानेर में पढाई के दौरान ही वे नौकरी के लिए कलकत्ता चले गए। उन्हें पहली कामयाबी तब मिली, जब कलकत्ता के प्राचीन अल्फ्रेड थिएटर से उनका नाटक ‘रंगीला मारवाड़’ प्रदर्शित हुआ। इससे भरत जी को काफी प्रसिद्धि मिली और यहीं से उनके कामयाब जीवन की शुरुआत हुई। इस नाटक के बाद उन्होंने ‘रामू चनणा’ एवं ‘ढोला मरवण’ के भी जोरदार शो किए। ये नाटक स्वयं भरतजी ने ही लिखे थे। कलकत्ता में ही प्रदशित नाटक ‘मोरध्वज’ में भरत जी ने मोरध्वज की शानदार भूमिका निभाई। व्यासजी जल्दी ही बीकानेर वापस आ गए। मगर अपनी किस्मत आजमाने बम्बई का रुख किया बताते है फिल्म निर्देशक और अनुज बी एम व्यास ने भरतजी को फिल्मी दुनिया में ब्रेक दिया। फिल्म ‘दुहाई’ के लिए उन्होंने भरतजी का पहला गीत खरीदा और दस रुपए बतौर पारिश्रमिक दिए। भरत जी ने इस अवसर का खूब फायदा उठाया और एक से बढकर एक गीत लिखते गए। सफलता उनके कदम चूमती गई और वे फिल्मी दुनिया के ख्यातनाम गीतकार बन गए। ‘आधा है चंद्रमा, रात आधी..’ ‘जरा सामने तो आओ छलिये’, ‘ऎ मालिक तेरे बंद­ हम’, ‘जा तोसे नहीं बोलूं, घूंघट नहीं खोलूं’, ‘चाहे पास हो चाहे दूर हो’, ‘तू छुपी है कहां, मैं तड़पता यहां’, ‘जोत से जोत जलाते चलो’, ‘कहा भी न जाए, चुप रहा भी न जाए’ जैसे भरतजी की कलम से निकले जाने कितने ही गीत है जो आज बरसों बीत जाने के बाद भी उतने ही ताजा हैं और सुनने वाले को तरोताजा कर देते हैं। हिंदी गीतों के अलावा उन्होंने राजस्थानी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे। ‘थांनै काजळियो बणाल्यूं-नैणां में­ रमाल्यूं …’ जैसे उनके गीतों से राजस्थानी सिनेमा को एक नया आयाम मिला। उन्होंने करीब सवा सौ फिल्मों में गीत लिखे।
भरत व्यास ने अपने गीतों में भारतीयता की भावना को उजागर किया। मानवीय संवेदना, विरह-वेदना, भक्ति व दर्शन का अपनी रचनाओं समावेश किया। भरत व्यास के लिखे अधिकांश गीतों को मुकेश व लता मंगेशकर की आवाज का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एक समय तो वी. शांताराम का निर्माण- निर्देशन और पंडित भरत व्यास के गीत एक दूसरे के पर्याय बन गए थे एवं सफलता की गारंटी भी। वैसे भरत व्यास ने लक्ष्मीकांत – प्यारेलाल, कल्याण जी – आनन्द जी, बसंत देसाई, आर डी बर्मान, सी. रामचन्द्र जैसे दिग्गज संगीतकारों के लिए भी गीत रचना की। लेकिन उनकी जबर्दस्त हिट जोड़ी एस एन त्रिपाठी साहब से बनी। बहुआयामी प्रतिभा के धनी भरत व्यास ने न केवल अपने गीतों में देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता और बलिदान का संदेश दिया, बल्कि प्रेम से परिपूरित भावनाओं के भी गीत भी लिखे। ’नवरंग‘, ’सारंगा‘, ’गूूंज उठी शहनाई‘, ’रानी रूपमती‘, ’बेदर्द जमाना क्या जाने‘, ’प्यार की प्यास‘, ’स्त्री‘, ’परिणीता‘ आदि ऎसी कई ख्यात फिल्में­ हैं, जिनमें­ उनकी कलम ने प्रेम भावनाओं से ओत-प्रोत गीत लिखे। भरत व्यास की मृत्यु 4 जुलाई 1982 को हो गयी थी।