उपन्यास सम्राट : मुंशी प्रेमचंद
( 31 जुलाई जयंती विशेषांक)

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अपने देश में शायद ही कोई ऐसा होगा जो प्रेमचंद जी को ना जानता हो या उसने उनके बारे में ना सुना हो |आज प्रेमचंद्र जी की 138 वी जयंती है | मुंशी प्रेमचंद जी ऐसे कालजयी उपन्यासकार थे जिन्होंने अपनी लेखनी के दम पर पूरे भारत के हर एक व्यक्ति को अपना मुरीद बना लिया था। मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 में बनारस के लमही नामक गांव में हुआ था। उनका असली नाम धनपतराय था।मुंशी प्रेमचंद्र का गोरखपुर से बहुत पुराना नाता है ।उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी ने अपना पहला साहित्यिक काम गोरखपुर से ही उर्दू में शुरू किया था सोजे – ए – वतन उनकी पहली रचना थी। प्रेमचंद जी की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उनकी किसी भी रचना को पढ़ते समय ऐसा बिल्कुल नहीं लगता है कि आप कोई किताब या उपन्यास पढ़ रहे हैं । ऐसा महसूस होता है कि वह सब कुछ आपके आस-पास ही घटित हो रहा है यही कारण है कि उनकी रचनाएं आज भी आमजन में प्रसिद्ध है। उनके निधन के इतने वर्षों के बाद उनकी रचनाएं ‘कफन’ हो चाहे ‘गबन’ या हो ‘नमक का दरोगा’ या विश्व प्रसिद्ध गोदान, हर किसी को उसके अपने जमीन से जोड़ देता है| प्रेमचंद जी ने लगभग 300 लघुकथाएं 14 उपन्यास और बहुत से निबंध तथा पत्रों की रचना की प्रेमचंद जी का जीवन शुरू से ही गरीबी,अभाव और शोषण के बीच में गुजरा परंतु उन्होंने इन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनी लेखनी को नहीं छोड़ा। जो उन्होंने जिया जो उनके साथ घटित हुआ जैसा उस समय उन्होंने समाज को देखा हुबहू वह सब कुछ अपने कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से अपनी पीड़ा को व्यक्त किया।
अपने उपन्यास के द्वारा समाज की कुरीतियों पर प्रहार करने वाले अपने कथा के नायकों द्वारा समाज के ताने-बाने का मर्म समझाने में जो सिद्धि प्रेमचंद जी ने हासिल की है वह शायद ही कोई दूसरा उपन्यासकार प्राप्त कर सके।इसीलिए तो बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय जिन्होंने देवदास और चरित्रहीन जैसी कालजयी रचनाएं रची उन्होंने प्रेमचंद जी को उपन्यास सम्राट कहा था। प्रेमचंद जी आम जनमानस के मनोभाव को समझने वाले और समाज में हर दिन हो रहे घटनाओं पर आम लोगों के दृष्टिकोण को हूबहू अपने रचनाओं में उतारा है।इसी कारण उनकी रचनाएं पढ़ते वक्त ऐसा लगता है की कहानी जीवंत हो रही है और ऐसा लगता है कि मानो यह अपने ही गांव समाज की ही कहानी है और उन्होंने अपने किस्से, कहानियों में बेहद सरल सहज आमजन की बोली का प्रयोग किया है उन्होंने अपनी रचनाओं में उन नायकों को अपनी कलम से सींंचा है और फिर उन्हें बड़े ही शानदार तरीके से गढ़ा है जिन्हें तब भी और अब भी कहीं कभी-कभार भारतीय समाज अछूत,घृणित और जाति प्रथा के कारण छोटा समझता है। ऐसा नहीं है कि प्रेमचंद जी की सारी कहानियां ईदगाह के हामिद और गोदान के हरिया तक सीमित रही उन्होंने कई अन्य विषयों जैसे सांप्रदायिकता,भ्रष्टाचार, जमीदारों द्वारा किसानों पर अत्याचार, कर्ज, उपनिवेशवाद पर भी खूब कलम चलाई है। प्रेमचंद जी की स्मृति में भारतीय डाक विभाग द्वारा 30 जुलाई 1980 को उनके जन्म के शुभ अवसर पर 30 पैसे का एक डाक टिकट उनके सम्मान में जारी किया गया था तथा वर्ष 2016 में विश्व के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल के द्वारा उनके 136 में जन्म दिवस पर उनके सम्मान में गूगल ने अपने होमपेज पर उनके लिए डूडल बनाकर भारतीय गांव की मिट्टी में रची बसी कहानी जिससे हर भारतीयों के दिल में छा जाने वाले प्रेमचंद को फिर से लोगों को याद दिलाया था।उनकी सभी पुस्तक के अंग्रेजी के अलावा चीनी रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में खूब प्रसिद्ध हुई और आज भी पढ़ी जा रही हैं।भारतीय समाज में व्याप्त संप्रदायिकता पर प्रेमचंद जी कहा करते थे कि “जो आदमी दूसरी कौम से जितनी नफरत करता है समझ लीजिए वह अपने खुदा या भगवान से उतनी ही दूर है”| आज जहां पूरे विश्व में अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताने कि एक होड़ चल रही है।उस वक्त प्रेमचंद जी की यह लाइनें हमें अंतिम सत्य की ओर इशारा करती हैं।सामाजिक बुराई का जमकर विरोध करना पर सामाजिक रिश्ते का महत्व भी बताना,गरीबों की आवाज उठाते हुए आपसी रिश्तो में प्रेम को व्यक्त करने की कला सिर्फ प्रेमचंद जी के कलम में ही है।आज भले ही प्रेमचंद जी को भारतीय साहित्य का भीष्म पितामह कहा जाता है पर उनका गांव आज भी अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहा है।लमही का जितना विकास होना चाहिए था उतना विकास होता दिख नहीं रहा है।यह हमारे शासन और प्रशासन की कमी है कि हमने उस गांव को सिर्फ हेरिटेज का दर्जा देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है।हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा लोकसभा चुनाव 2019 के बाद हुए पहले मन की बात तथा कुल 53वें मन की बात की कड़ी में प्रधानमंत्री जी ने प्रेमचंद जी के कहानियों का जिक्र किया जिसमें नशा, ईदगाह, पूस की रात का थी। प्रेमचंद जी की कहानियां आज भी “सुनी और सुनाई जाती है,पढ़ाई और पढ़ाई जाती हैं क्योंकि इन कहानियों में ही जीवन के असली रंग और उसमें छुपे मर्म जीवंत दिखाई देते हैं”| मानव के हर संवेदना का इतना बारीकी से लेखन हिंदी साहित्य में अभी तक किसी दूसरे लेखक के द्वारा नहीं हुआ है|पूस की रात जिसमें गरीब किसान के जीवन के भिन्न-भिन्न समय पर उसके मन में उठने वाले भावों को जिस प्रकार से प्रेमचंद जी ने उकेरा है वैसा किसी दूसरे साहित्य में नजर नहीं आता|इस कारण प्रधानमंत्री जी का कहना बिल्कुल उचित है कि प्रेमचंद जी की कहानियां भले ही सदी भर पहले की पर उनकी प्रासंगिकता अब भी उतनी ही जितनी उस कालखंड में ही जब यह रची गयी थी। प्रेमचंद जी की एक प्रसिद्ध कहानी “अलग्योझा” जिसका शाब्दिक अर्थ है संयुक्त परिवार का विभाजन या बँटवारा में भी समाज के उच्च वर्ग द्वारा दिखावे के जीवन पर कुछ इस प्रकार प्रेमचंद जी ने अपने कलम से प्रहार किया है कि “ऊंची जातियों में होता है कि घर में चाहे जो कुछ करो बाहर पर्दा ढका रहे”|यही कारण है कि उनकी सारी रचनाएं आज भी आम जनमानस में प्रसिद्ध हैं। उनकी प्रासंगिकता जितनी कल थी उतनी आज भी है बेशक समय काल में परिवर्तन अवश्य हुआ है लेकिन जो उनकी कहानी और उपन्यास के मुख्य पात्र हुआ करते थे किसान ,गरीब और शोषित उनकी समस्याएं आज भी वैसी की वैसी ही है । उनका उपन्यास गोदान, निर्मला, गबन ,सेवा सदन में भारतीय समाज के ताने बाने,.ग्रामीण जीवन और किसानों की व्यथा का जीवंत वर्णन किया है । वह अब शायद ही कोई लिख पाए इसी कारण प्रेमचंद जी आज हर आम जनमानस के दिलों में जीवित हैं। बीसवीं सदी के शुरुआती हिंदी लेखकों में से एक तथा भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रतिष्ठित लेखकों में से एक मुंशी प्रेमचंद जी को उनके जन्मदिवस पर कोटि कोटि प्रणाम ।