दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन के लिए उपराज्यपाल को भाजपा का पत्र 

नई दिल्ली। दिल्ली के नागरिकों के हित में माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुपालन में जल्द से जल्द उचित कार्रवाई विशेष रूप से समाज के वंचित वर्ग के की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी व दिल्ली विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने दिल्ली के उपराज्यपाल को पत्र लिखा।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष  ने कहा कि वैश्विक महामारी कोविड-19 से निपटने के दौरान दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने गंभीर लापरवाही दिखाई है। कई ऐसे उदाहरण है जिसमें राज्य सरकार द्वारा किए गए बड़े दावों का झूठ उजागर किया है। यहां तक कि दिल्ली सरकार के न सुनने पर लोगों ने माननीय उच्च न्यायालय की से मदद मांगी। माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने कई मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लिया था और दिल्ली सरकार को जनहित याचिकाओं को लेकर गंभीरता से कार्रवाई के निर्देश दिए थे। दिल्ली सरकार के राशन वितरण प्रणाली को लेकर दिल्ली भाजपा ने भी कई बार सवाल उठाए और उसकी खामियों से दिल्ली सरकार को अवगत कराया जिस पर दिल्ली सरकार ने कोई उचित कार्रवाई नहीं की। सुल्तानपुरी के निवासियों द्वारा ई- कूपन धारकों को भी राशन नहीं मिलने का मामला उजागर हुआ जिस पर गत 20 मई को माननीय उच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया और दिल्ली सरकार को राशन से वंचित लोगों को राशन मुहैया करवाने का निर्देश दिया। केंद्र सरकार की ओर से भी दिल्ली सरकार को पर्याप्त राशन मुहैया करवाया गया और उस राशन का वितरण करवाना दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी थी लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी दिल्ली के गरीब और जरूरतमंद लोग राशन से वंचित हैं। दिल्ली सरकार द्वारा कोविड-19 संबंधी सहायता के लिए जारी किए गए हेल्पलाइन नंबर1075 की निष्क्रियता और अस्पतालों में बेड व वेंटीलेटर की कमी का मामला भी प्रकाश में आया।  धर्मेंद्र भारद्वाज नामक व्यक्ति ने अपनी मां के इलाज के लिए मैक्स पटपड़गंज अस्पताल में भर्ती करवाया लेकिन अस्पताल ने उन्हें वेंटीलेटर और बेड का इंतजाम करने को कहा। मदद के लिए श्री भारद्वाज ने हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। उन्हें डीएसओ का नंबर 9870552526 दिया गया लेकिन फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ। उन्हें क्रमशः दो अन्य नंबर, 011-22307133 और 22307145 दिए गए, जिस पर कोई उत्तर नहीं मिला। गत 26 मई माननीय उच्च न्यायालय ने अस्पतालों की व्यवस्था पर संज्ञान लेते हुए हेल्पलाइन नंबर को सक्रिय करने व हेल्पलाइन नंबर पर कोविड-19 संबंधी जानकारी जैसे कि सरकारी और निजी अस्पतालों में बेड व वेंटिलेटर की उपलब्धता प्रदान करने के लिए निर्देशित किया। माननीय उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को अस्पताल में भर्ती होने के लिए कोविड-19 गंभीर रोगियों के पिकअप के लिए एम्बुलेंस की सुविधा प्रदान करने पर विचार करने को भी कहा। न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद भी दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था में कोई सुधार नहीं आया। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग की कमियों के कारण दिल्ली के नागरिकों को कोविड-19 महामारी के दौरान इलाज के लिए जूझना पड़ा लेकिन दिल्ली सरकार ने टीवी, प्रिंट, इंटरनेट पर करोड़ों खर्च कर दिए। यह सभी दिल्ली के लोगों के समक्ष है कि उनकी गाढ़ी कमाई को दिल्ली सरकार कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था पर खर्च करने की बजाय विज्ञापनों पर खर्च कर रही है। आपके माध्यम से यह जानकारी चाहते हैं कि दिल्ली सरकार ने गत 22 मार्च जनता कर्फ़्यू से लेकर आज 29 मई तक टीवी प्रिंट और इंटरनेट पर दिए विज्ञापनों पर कितने करोड़ का खर्च किया और अस्पतालों के बेड व वेंटीलेटर पर कितना खर्च किया?

दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष  रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा कि दिल्ली के राज्यपाल का ध्यान दिल्ली सरकार द्वारा लिए गए उन फैसलों की ओर आकर्षित करना चाहेंगे जिससे मानवाधिकार का उल्लंघन हुआ है। दिल्ली संस्करण के समाचार पत्रों के आधार पर लोक नायक अस्पताल शहर का सबसे बड़ा समर्पित कोविड-19 अस्पताल है और इसकी मोर्चरी के अंदर, 108 शव हैं, उसमें से 80 मोर्चरी रैक में और फर्श पर 28 शव हैं, जो एक दूसरे के ऊपर रखे हैं। गत 26.05.2020 को, आठ शवों को निगम बोध घाट, सीएनजी श्मशान से लौटा दिया गया क्योंकि वहां अधिक शवों को स्वीकार करने की स्थिति नहीं थी, छह भट्टियों में से केवल दो काम कर रही थे। 5 दिन पहले मरने वालों के शवों का अभी तक अंतिम संस्कार नहीं किया गया है। शवों के अंतिम संस्कार निगम बोध और पंजाबी बाग श्मशान में सीएनजी भट्टियों के काम न करने के कारण नहीं हो पा रहा है। सीएनजी भट्टियों के कारण कार्य नहीं करने पर लकड़ी आधारित दाह संस्कार, जिसे पहले सुरक्षित नहीं माना गया था, दिल्ली सरकार द्वारा उसकी भी अनुमति दी गई है लेकिन संक्रमण के डर से अब श्मशान का संचालन करने वाले कर्मचारी लकड़ी आधारित श्मशान में भाग लेने से मना कर रहे हैं। निगम बोध घाट पर काम कर रहे कर्मचारियों और पुजारियों ने काम करना बंद कर दिया है। माननीय न्यायालय ने इन मामलों की स्थिति पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की और यह भी कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा और निष्पक्ष उपचार का अधिकार केवल एक जीवित व्यक्ति को ही नहीं बल्कि उसके शरीर को भी उपलब्ध है, उसकी मृत्यु के बाद। माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस संदर्भ में दिल्ली सरकार को रिपोर्ट दर्ज करने का निर्देशित था। दिल्ली सरकार लगातार कोर्ट के आदेशों की अवमानना करती आई है।उन्होंने अनुरोध करते हैं कि दिल्ली के नागरिकों के हित में माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुपालन में जल्द से जल्द उचित कार्रवाई करें, विशेष रूप से समाज के वंचित वर्ग की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए। दिल्ली के लोगों को पहले से ही बहुत नुकसान हुआ है और उनकी शिकायतों को अभी तक उचित रूप से संबोधित नहीं किया गया है जो लॉकडाउन के पूरे उद्देश्य को विफल कर दिया है। कंटेनमेंट जोन बनाए गए हैं, फिर भी उनके पास बुनियादी सुविधाओं का अभाव है जो मानव अस्तित्व के लिए मूलभूत हैं, जैसे कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली जो विफल रही है और दिल्ली राज्य केंद्र सरकार द्वारा आपूर्ति किए गए खाद्यान्नों को चैनलाइज़ करने में भी सक्षम नहीं था। लॉकडाउन की अवधि के दौरान दिल्ली के अस्पतालों में कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं करवाई गई जिसके कारण माननीय उच्च न्यायालय को भी मामले का संज्ञान लेना पड़ा। दिल्ली सरकार की ओर से गंभीर लापरवाही के कारण प्रतिदिन दिल्ली में कोविड-19 के मामले तेजी से बढ़े हैं।