पांच सितारा सियासत के बीच राजस्थान में कोरोना और टिड्डियों का हमला

बाल मुकुन्द ओझा

राजस्थान सरकार इस समय अपना वजूद बचाने में व्यस्त है। सियासी संग्राम उफान पर है। आर पार की लड़ाई लड़ी जा रही है। नित नए आरोप लगाए जा रहे है। विकास कार्य ठप्प पड़े है। इस दौरान आम आदमी को राहत पहुँचाने के बजाय समूची सरकार पिछले एक पखवाड़े से पांच सितारा होटल में क्वरेन्टीन है वहीँ कोरोना और टिड्डियों ने प्रदेश में अपना हमला बढ़ा दिया है। राज्य में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या में रोजाना बढ़ोतरी हो रही है। राज्य में कोरोना पॉजिटिव 30 हजार को पार कर गए हैं। कोरोना से अब तक 575 लोगों की मौत हुई है। राज्य में गहराई राजनीतिक अस्थिरता के कारण सरकार कोरोना और टिड्डियाँ दोनों की प्रभावी मॉनिटरिंग नहीं कर पा रही है जिसके फलस्वरूप स्थिति काबू से बाहर होती जा रही है।
राज्य में मौजूदा सियासी संग्राम के बीच कोरोना और टिड्डियाँ दोनों ही लोगों की जान की दुश्मन बनी हुई है। राजस्थान के मारवाड़ में पीली टिड्डियों के दल ने सैकड़ों हेक्टेयर मे हमला बोलते हुए खरीफ की फसल व वनस्पति को चट कर लिया है। वे यहां प्रजनन करते हुए जमीन में अंडे देकर नया दल भी तैयार कर रही है।
रेगिस्तानी टिड्डी को सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। एक स्क्वेयर किलोमीटर में टिड्डी दल में आठ करोड़ के लगभग टिड्डी हो सकती हैं, टिड्डी जहां बैठती हैं वहां विश्राम के समय मादा टिड्डी अपने उदर भाग को लगभग जमीन में 15 सेंटीमीटर गहराई तक जमीन में दबा कर अंडे देती है। एक मादा टिड्डी एक बार में 40 से 120 तक अंडे दे सकती है। अपने पूरे जीवन चक्र में 2 से 3 बार कुल 200 से 250 तक अंडे दे सकती है। अंडों का साइज चावल के दाने के आकार का होता है और रंग नारंगी अथवा पीला होता है। जमीन में अंडे देती है और 10 से 30 दिन बाद फांका जिसको शिशु कहते हैं जिनका रंग काला अथवा भूरा होता है जब जमीन से निकलते हैं। जमीन में फुदक फुदक कर चलते रहते हैं और फसल की कोमल पत्तों को खाते रहते हैं। यह शिशु जिन्हें फाका भी कहते हैं फसलों के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक और हानिकारक होता है। 20 से 25 दिन बाद यह शिशु वयस्क हो जाते हैं जिन्हें होपर भी कह देते हैं। टिड्डी तीन रंगों की होती हैं , गुलाबी, भूरी और पीली। पीले रंग की टिड्डी अंडे देती हैं। संभोग के 24 घंटे बाद अंडे देती है। अपने 12 सप्ताह के पूरे जीवन काल में एक टिड्डी 5 से 7 दिन में 200 से 250 तक अंडे दे सकती है। 2 सप्ताह बाद शिशु निकलते हैं और 5 स्टेज से होकर 3 सप्ताह में प्रोढ हो जाते हैं। इस तरह से इनकी संख्या करोड़ों में हो जाती है जो फसलों में बहुत ज्यादा हानि पहुंचाते हैं। टिड्डी एक मरुस्थलीय कीट है। यह कीट भूख मिटाने और प्रजनन के लिए पाकिस्तान होते हुए भारत के राजस्थान राज्य के मरुस्थली इलाके में प्रवेश करता है और जहां भी पेड़, पौधे अथवा फसलें दिखाई दें वहां नुकसान पहुंचाता है। यह कीट पूरे विशाल दल के साथ उड़ान भरता है जो कि हजारों की संख्या में होते हैं तथा 1 दिन में ही हवा की दिशा में ही उड़ता है तथा प्रतिदिन 150-200 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है। अनुमान से 1 किलोमीटर के इलाके में 5-6 करोड़ टिड्डी हो सकती है तथा जिस भी खेत में बैठती हैं पूरे खेत की फसल, पेड़ पौधों को संपूर्ण चट कर जाती हैं।
टिड्डी के बारे मे तो आपने अवश्य ही सुन रखा होगा। इसे लधुश्रृंगीय टिड्डा भी कहते हैं। विश्व में इसकी केवल छह जातियाँ पाई जाती हैं। यह प्रवासी कीट है और इसकी उड़ान दो हजार मील तक पाई गई है। बताया जाता है टिड्डियों के दलों के खेत पर आक्रमण करने से खेत को भारी नुकसान होता है। खेत के अंदर कुछ नहीं बचता है। एक कीट अपने वजन के बराबर फसल खा जाता है। इसका वजन 2 ग्राम होता है। एक छोटे से टिडडी दल का हिस्सा एक दिन मे उतनी खाध्य सामग्री खा जाते हैं जितनी कोई 3000 हजार इंसान खा सकते हैं। लेकिन टिडडे की उम्र कोई ज्यादा नहीं होती है। यह 4 से 5 महिने ही जीवित रह पाते हैं। इन कीडों की सबसे बड़ी खास बात यह है कि यह हवा के अंदर 150 किलोमिटर एक सांस मैं उड़ सकते हैं। हिंद महासागर को पार करने के लिए इनको 300 किलोमिटर की दूरी पार करनी होती है।