हर साल सिगरेट के धुएं में उड़ती है 70 लाख जिंदगी
विश्व तंबाकू निषेध दिवस
|
बाल मुकुन्द ओझा
दुनिया भर में हर साल 31 मई को नो टोबैको डे यानि विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिन तंबाकू या इसके उत्पादों के उपभोग पर रोक लगाने या इस्तेमाल को कम करने के लिए लोगों को जागरुक किया जाता है। दुनियाभर में इस समय कोरोना संक्रमण की चर्चा ज्यादा हो रही है जबकि तम्बाकू जैसी साइलेंट महामारी पर 70 लाख लोग हर साल अपनी जान से हाथ धो रहे है। यदि इतनी सतर्कता तम्बाकू जैसी महामारी की जाती तो 70 लाख लोगों को अकाल मृत्यु से बचाया जा सकता था।
तम्बाकू के बारे में बताया जाता है कि यह निकोटियाना प्रजाति के पेड़ के पत्तों को सुखा कर नशा करने के लिए बनाई जाती है। तम्बाकू एक मीठा जहर है जो बीड़ी सिगरेट, हुक्का, गुल, गुड़ाकु, जर्दा, किमाम, खैनी, गुटखा अदि धुंवा रहित और धूम्रपानयुक्त कई रूपों में बाजार में उपलब्ध है। तम्बाकू के इस्तेमाल से मुँह, गला, मस्तिष्क, घेंघा, फेफड़ें, पित्ताशय, गुर्दे और स्तन सहित शरीर के विभिन्न अंगों में कैंसर पैदा हो सकता है। तम्बाकू के कारण हदय रोग, फेफड़े संबंधी रोग, पक्षाघात, अंधापन, दांत और मसूड़े की बीमारियां भी हो सकती है। तम्बाकू के गुटके के रूप में खाने से सफेद दाग, मुँह का नहीं खुल पाना तथा कैंसर रोग भी हो सकता है। लगातार गुटखे या तम्बाकू का सेवन आपके दांत को ढीले और कमजोर बना देते हैं बैक्टीरिया दांतों में जगह बना लेते हैं जिससे दांतों का रंग बदलने लगता है और धीरे-धीरे दांत गलने भी लगते हैं। तम्बाकू या गुटखा लगातार खाने वालों की जीभ, जबड़ों और गालों के अंदर सेंसेटिव सफेद पेच बनने लगते हैं और उसी से मुंह में कैंसर की शुरुआत होती है जिसके बाद धीरे-धीरे मुंह का खुलना बंद हो जाता है और मुंह में कैंसर फैल जाता है।
दूध-दही के लिए प्रसिद्ध भारत में अब तंबाकू से बने उत्पादों का बढ़ता इस्तेमाल नई पीढ़ी को धीमी मौत की ओर धकेल रहा है। भारत में सबसे अधिक होने वाला कैंसर मुंह में होने वाला कैंसर है। इसका कारण यह है कि यहाँ के निवासी तंबाकू का किसी न किसी रूप में अत्यधिक सेवन करते हैं। गुटखा, पान-मसाला, खैनी आदि तंबाकू उत्पादों का सेवन यहां के तमाम लोगों की आदतों में शुमार हो गया है। तंबाकू, पान-मसाला और गुटखा के खिलाफ चले अनेक अभियानों के बावजूद तमाम लोगों की तम्बाकू की लत कुछ थमी जरूर है, पर इससे छुटकारा नहीं मिल सका है।
दुनियाभर में हर साल लगभग 70 लाख लोगों की मौतें ध्रूमपान की वजह से होती है। तंबाकू उत्पादों का शरीर पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। फेफड़े के कैंसर का मुख्य कारण धूमपान ही है। तंबाकू के धुएं में निकोटिन व कार्बन मोनो आक्साइड आदि नुकसानदेह गैसें मौजूद रहती हैं। इस कारण हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है। फेफड़े हमें सांस लेने में सहायता करते हैं। वे शरीर की सभी कोशिकाओं को ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। कैंसर कोशिकाएं असामान्य कोशिकाएं होती हैं। कैंसर की कोशिकाएं स्वस्थ कोशिकाओं के मुकाबले अधिक तेजी से पैदा होती हैं और बढ़ती हैं।
यह सर्वविदित है तम्बाकू के सेवन से जीवन शक्ति का भी ह्रास होता है। व्यक्ति को पता चल जाता है कि तम्बाकू का सेवन हानिकारक है किंतु लाख प्रयासों के बाद भी यह लत छूटती नहीं। और जब व्यक्ति किसी भयानक रोग का शिकार हो जाता है तब उसे इसके खतरनाक होने का एहसास होता है मगर तब तक देर हो चुकी होती है। यह सत्य है कि तम्बाकू का प्रयोग किसी भी रूप में किया जाए, इसका शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता ही है।
भारत के साथ ही सम्पूर्ण विश्व में पिछले कुछ सालों में तम्बाकू के सेवन और उससे पीड़ित लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इस गंभीर लत ने हजारों लोगों को विभिन्न बीमारियों के साथ अकाल मौत के मुँह में धकेल दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तंबाकू और धूम्रपान सेवन से होने वाली हानियों और खतरों से विश्व जनमत को अवगत कराके इसके उत्पाद एवं सेवन को कम करने की दिशा में आधारभूत कार्यवाही करने का प्रयास किया है। तम्बाकू सेवन केवल शरीर के लिए ही हानिकारक नहीं है, यह व्यक्ति की सामाजिक-आर्थिक सिथति को भी कमजोर बनाती है। कई बार इसकी वजह से लोगों का घर-परिवार ही तबाह हो जाता है।
भारत में किए गए अनुसन्धानों से पता चला है कि गालों में होने वाले कैंसर का प्रधान कारण खैनी अथवा जीभ के नीचे रखनी जाने वाली, चबाने वाली तंबाकू है। इसी प्रकार ऊपरी भाग में, जीभ में और पीठ में होने वाला कैंसर बीड़ी पीने के कारण होता है। सिगरेट गले के निचले भाग में कैंसर करती है और आंतड़ियों के कैंसर की भी संभावना पैदा कर देती है। यदि हमें एक स्वस्थ एवं खुशहाल जिन्दगी हासिल करनी है तो हमें तम्बाकू का प्रयोग हर हालत में छोड़ना ही होगा। ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है। तंबाकू का प्रयोग दृढ़ निश्चय करके ही छोड़ा जा सकता है।