दौर-ए-कोरोना में किसान करेंगे अर्थव्यवस्था का कल्याण
अन्नदाता किसानों ने की देश का अनाज भंडार लबालब भरने की तैयारी
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कोविड-19 के कारण मानवता के अस्तित्व पर मंडरा रहे संकट के इस दौर में देश के अन्नदाता किसानों का हौसला कोरोना के कहर पर भारी पड़ता दिख रहा है। मौसम से मिले भरपूर सहयोग और गांव, गरीब व किसान के हितों की हिफाजत को प्राथमिकता देते हुए लागू की गई सरकारी नीतियों का दोहरा साथ पाकर किसानों ने भी ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान में अपना भरपूर योगदान देने की ठान ली है और इसी का नतीजा है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल खरीफ फसलों की बुआई-रोपाई के रकवे में 21 फीसदी से भी अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि इस बार फसलों की बुआई और रोपाई में हुई इस वृद्धि में कई दूसरी वजहों का भी योगदान रहा है जिसमें तकरीबन आठ करोड़ प्रवासी मजदूरों के कोरोना काल में गांवों की ओर लौटने के कारण ग्रामीण भारत के श्रमबल में हुआ इजाफा और बीते डेढ़ महीने के दौरान सामान्य से दस फीसदी अधिक बरसात होना भी शामिल है और सरकार की नीतियों के कारण किसानों की नकदी की समस्या का निराकरण होने और फसल बीमा योजना का विस्तार व फसलों के समर्थन मूल्य में वृद्धि किये जाने सरीखे कदमों ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन इस सब के बीच कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला देश होने के नाते भारत की अर्थव्यवस्था को ग्रामीण भारत से ही गति मिलने की बात को समझते हुए कोरोना के खतरे के बीच पूरे उत्साह से पिछली बार के मुकाबले इस दफा 21 फीसदी से अधिक जमीन पर फसलों की रोपाई और बुआई किये जाने का असली श्रेय तो अन्नदाता किसानों की दृढ़ इच्छाशक्ति और देश के प्रति उनके समर्पण को ही दिया जाएगा।
वास्तव में देखा जाए तो इस बार मौसम ने भी किसानों का भरूपर साथ दिया है और सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बीते डेढ़ महीने के दौरान देश में सामान्य से दस फीसदी अधिक बारिश रिकार्ड की गई है। सीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट के अनुसार इस गुरूवार तक देश में 123 जलाशयों में उपलब्ध पानी का ताजा भंडारण पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान उपलब्ध पानी का 150 प्रतिशत और पिछले दस वर्षों के औसत संग्रहण का 133 प्रतिशत है। एक ओर मौसम ने भरपूर साथ दिया है और दूसरी ओर सरकार व प्रशासन के स्तर से भी हरसंभव मदद व सहायता मिल रही है। इसका भरपूर लाभ उठाने में किसानों में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है और इसी का नतीजा है कि केन्द्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा दर्ज किये गए आंकड़े इस बात की खुले तौर पर तस्दीक कर रहे हैं कि जुलाई माह के पहले पखवाड़े तक जहां पिछले साल 570.86 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में खरीफ फसलों की बुआई हुई थी वह रकवा इस साल 21.20 फीसदी बढ़कर 691.86 लाख हेक्टेयर हो गया है। किसानों ने पिछले वर्ष 142.06 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की रोपाई की थी जो इस साल 18.59 फीसदी बढ़कर 168.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र हो गया है।
इसी प्रकार पिछले साल 61.70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहन की खेती हुई थी जिसमें इस साल 32.35 फीसदी की वृद्धि दर्ज कराते हुए किसानों 81.66 लाख हेक्टेयर में दलहन की बुआई की है। मोटे अनाजों की बात करें तो पिछले साल 103.00 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी बुआई हुई थी जिसमें इस साल किसानों ने 12.23 फीसदी की वृद्धि दर्ज कराते हुए 115.60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मोटा अनाज बोया है। इसके अलावा सबसे अधिक रिकार्ड 40.75 फीसदी वृद्धि तिलहन की बुआई में दर्ज हुई है। बीते साल किसानों ने 110.09 लाख हेक्टेयर में तिलहन की खेती की थी जो इस इस साल बढ़कर 154.95 लाख हेक्टेयर हो गई है। गन्ने की खेती में भी किसानों ने बीते साल के मुकाबले इस बार तकरीबन एक फीसदी की वृद्धि दर्ज कराई है जबकि कपास उगाने में 17.28 फसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। बीते साल किसानों ने 96.35 लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास की खेती की थी जबकि इस साल 113.01 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की खेती हो रही है। कोरोना के प्रसार में लगातार इजाफे की खबरों के बावजूद खरीफ के फसल की रोपाई-बुआई में किसानों द्वारा रिकार्ड वृद्धि दर्ज कराए जाने का ही नतीजा है कि सरकार ने खुले तौर पर बताया है कि देश के कृषि क्षेत्र पर कोरोना का जरा भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है।
राकेश रमण