सैलानियों को चमत्कृत करता है जयपुर का जंतरमंतर
ज्योतिषी गणना का कमाल और ज्योतिष विद्या की थाती है जयपुर का जंतरमंतर


इन प्राचीन पद्धतियों से अधिक शुद्ध निष्कर्ष निकालने वाले तीन यंत्र-सम्राट, जयप्रकाश तथा रामयंत्र बने हैं जो स्वयं महाराजा जयसिंह द्वारा आविष्कृत हैं। इनकी गणना शुद्धता आधुनिक वैज्ञानिकों को भी विस्मित कर देती है। इनके अलावा भी इस वेधशाला में नाड़ी वलय यंत्र, क्रांति वृत यंत्र, यंत्रराज, उन्नतांश यंत्र, दक्षिणोदक भित्ति यंत्र, षष्ठांश यंत्र, राशिवलय यंत्र, कपाली यंत्र, चक्र यंत्र तथा दिगंश आदि कुल 16 यंत्र हैं जो सभी चूने-पत्थर से बने हुए हैं।
जंतर-मंतर का छोटा सम्राट यंत्र बड़े सम्राट यंत्र का लघुरूप है तथा इसके समय सूचक चाप पर अंकित चिन्हों से बीस सेकण्ड तक का स्थानीय समय देखा जा सकता है। लगभग दस फीट व्यास का नाड़ी वलय यंत्र भी दो भागों में विभक्त है। इससे स्थानीय समय, राशियों में समस्त ग्रह एवं खगोलीय पिण्डों की स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है। इसी प्रकार क्रांति वृत यंत्र से राशियों में सूर्य की राशि एवं अंश तथा अन्य आकाशीय गृह-नक्षत्रों की स्थिति, ’यंत्र राज’ से जयपुर की आकाशीय स्थिति, सप्तऋषि मंडल तथा ध्रुवतारे और 27 नक्षत्रों की स्थिति का वेध किया जाता है वहीं उन्नतांश यंत्र से ग्रहादि के नतांश और उन्नतांशों का पता चलता है। दक्षिणोदक भित्ति यंत्र से ग्रह-नक्षत्रों की तथा षष्ठांश यंत्र से सूर्य-चन्द्रमा की क्रांति का बोध होता है। राशि वयल यंत्र से बारह राशियों की स्थिति और कपाली यंत्र से उदय क्षितिज गत राशि (लग्न) जानी जाती है। चक यंत्र से सूर्यादि ग्रहों की क्रांति आदि का ज्ञान प्राप्त होता है। दिगंश यंत्र से ग्रहों के दिगंश तथा धु्ववेध पट्रिटका से रात के समय धु्व तारे का बोध होता है। इसके अलावा पलभा यंत्र, भित्तिय यंत्र आदि अन्य यंत्र भी हैं जो ज्योतिष गणना के महत्वपूर्ण उपकरण हैं तथा आज भी पूर्णतय कार्य करने की स्थिति में हैं।