गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आज की जरूरत

|
किसी भी राष्ट्र के निर्माण में सबसे बेशकीमत संसाधन होता है वहां का मानव संसाधन परंतु अगर वह मानव संसाधन अज्ञानी, अकुशल और अशिक्षित हो तो वह उस राष्ट्र के लिए उसी तरह बोझ बन जाता है जैसे किसी पिछड़े रूढ़िवादी समाज में कौशलहीन विकलांग व्यक्ति। यद्यपि यह तथ्य सर्वज्ञ है कि शिक्षा किसी भी राष्ट्र के बहुआयामी (सामाजिक, आर्थिक, प्रौद्योगिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक) विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है परंतु किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन में इसकी महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। जिस तरह एक शिशु के स्वस्थ जीवन के लिए मां का दूध ही संपूर्ण आहार होता है वैसे ही शिक्षा भी एक व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक सार्थक जीवन जीने के लिए एक परम आवश्यक घटक है । हमारे देश में शिक्षा का महत्त्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि भारत सरकार ने निरूशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के तहत शिक्षा को जीवन का मौलिक अधिकार घोषित कर अनुच्छेद-21क में समाहित किया है।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सभी बच्चों की पहुंच बनाने के लिए हमारी सरकारें लंबे समय से प्रयासरत रही है, परिणामस्वरूप धरातल पर इसके सकारात्मक परिणाम देखने को भी मिल रहे हैं। विगत कुछ वर्षों से सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में आधारभूत सुविधाओं और गुणवत्ता के सुधार हेतु बजट आबंटन जीडीपी के औसत 3 प्रतिशत से बढ़ाकर वर्ष 2020-21 में 4.6 प्रतिशत तक किया है जो एक सराहनीय कदम है लेकिन फिर भी हम विश्व के अन्य राष्ट्रों से काफी पीछे हैं जहां जीडीपी का औसत 6 प्रतिशत से अधिक शिक्षा पर खर्च किया जाता है। शिक्षा हेतु एकीकृत जिला सूचना प्रणाली यू-डाइस के आंकड़ों के अनुसार सौ छात्रों के प्रारंभिक नामांकन में से भारत में इंटरमीडिएट तक केवल सत्तर छात्र अर्थात 12वीं की शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं। वार्षिक शिक्षा स्टेटस रिपोर्ट असर 2018 के मुताबिक ग्रामीण भारत में चार में से एक छात्र कक्षा आठ तक पढ़ाई छोड़ देता है। ये आंकड़े हमें दिखाते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में हमें और सुधार की आवश्यकता है। मौजूदा वैश्विक कोरोना महामारी ने हालातों को और भी गंभीर बना दिया है। पिछले 5 माह से सभी सरकारी गैर-सरकारी विद्यालय बंद है जिससे बच्चों की पढ़ाई पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। कुछ विद्यालय ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से छात्रों को पढ़ा रहे हैं परंतु अधिकतर बच्चों कि स्मार्टफोन तक पहुंच नहीं होने से वंचित है। ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं इंटरनेट रेंज की समस्या है तो कहीं बिजली कीद्य ऐसे में छात्रों की शिक्षा पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।
हाल ही में ग्रामीण बच्चों के साथ हुई चर्चा से ये तथ्य सामने आ रहे हैं कि लंबे अंतराल की छुट्टी के बाद बच्चों को स्वध्ययन में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें पढ़ने, समझने और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई हो रही है। नई क्रमोन्नत कक्षाओं कि पाठ्यपुस्तकों की पुस्तकों की अनुपलब्धता और अभिभावकों के पढ़ाई के लिए मानसिक दबाव से बच्चे परेशान हैं। ऐसे में जिन बच्चों को कोई सही तरीके से मार्गदर्शन और प्रेरित करने वाला नहीं है वे पढ़ाई छोड़ देंगे और भविष्य में स्कूल ड्रॉपआउट दर बढ़ने की प्रबल संभावना है। यह गिरती हुई शिक्षा की दर अमीर-गरीब और शहरी- ग्रामीण की खाई को और अधिक बढ़ा देगी जो सामाजिक-आर्थिक असमानता के साथ ही बौद्धिक असमानता भी पैदा करेगी! आगे चलकर यह असमानता एक विकसित राष्ट्र के लिए बहुत बड़ी बाधा बन सकती हैं।