नई दिल्ली। बच्चे उनके लिए सुरक्षित स्थान पर रहने के अभ्यस्त होते हैं जहां वे बाहर जा सकते हैं और उनकी उम्र के अन्य बच्चों के साथ मेलजोल कर सकते हैं पर लॉकडाउन के बाद ऐसा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। वे पढ़ने-समझने के नए तरीके सीख रहे हैं और नई सामान्य स्थिति’ के अनुकूल हो रहे हैं।
हालांकि उनकी देखभाल करने वाले और शिक्षक भी पूरी तत्परता से उनकी मदद करने में लगे हैं और ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा सामग्री विकसित कर बच्चों के सीखने का सिलसिला कायम रखने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। उन्हें शारीरिक व्यायाम से लेकर हर तरह की शिक्षा दे रहे हैं ताकि जब तक स्कूल बंद हैं बच्चों की शारीरिक मजबूती, सेहत और मानसिक स्फूर्ति बढ़ाने का काम जारी रहे।
इस कठिनतम दौर में वर्चुअल क्लासरूम का मकसद केवल करिकुलम पूरा करना नहीं है बल्कि विद्यार्थियों को सहानुभूति देना और उनके साथ अपनापन बढ़ाना भी है। इस प्रयास से बच्चों के जीवन में लय और दिनचर्या बनी रहती है जो विकासशील मस्तिष्क को सीखने-समझने का सुकून देता है। हालांकि इस फाॅर्मेट में बच्चों को गहराई से शिक्षा नहीं मिलने की चिंता बढ़ रही है। लोग उनके लंबे समय तक कंप्यूटर या मोबाइल फोन की स्क्रीन से चिपके रहने पर भी चिंतित हैं। वे पूछते हैं कि बच्चों की यह भलाई उनके लिए कितना अच्छा है।
इस संदर्भ में फिक्की एलायंस फाॅर री-इमेजिंग एडुकेशन शनिवार, 4 जुलाई को ‘गुड स्क्रीन टाइम वर्सस बैड स्क्रीन टाइम’ पर एक वेबिनार कर रहा है। इसके पैनल में न्यूरोसाइंस साइकोलाॅजी, चिकित्सा और साइबर सुरक्षा के एक्सपर्ट होंगे। वे स्कूलों की ऑनलाइन लर्निंग पर राष्ट्रीय और वैश्विक दृष्टिकोणों पर विमर्श करेंगे और सर्वश्रेष्ठ प्रक्रियाओं और सुरक्षा उपायों को सामने रखेंगेे जो वर्चुअल क्लासरूम में पढ़ते बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं।