चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल के 5वें संस्करण का पोस्टर लॉन्च

अभिनेता निर्देशक सतीश कौशिक और मनोज तिवारी व अन्य हस्तियों की उपस्थिति में चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल - 2024 की घोषणा

नई दिल्ली । डॉक्युमेंट्री और फिल्म मेकर्स की प्रतीक्षा को समाप्त करते हुए भारतीय चित्र साधना ने चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल (CBFF) के 5वें संस्करण की तिथियों की घोषणा कर दी है। भारतीय चित्र साधना की ओर से  दिल्ली के कान्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता में यह जानकारी दी गई। इस वार्ता में सिने जगत के जाने माने निर्देशक व अभिनेता सतीश कौशिक, भोजपुरी सिनेमा के प्रसिद्ध गायक, अभिनेता व सांसद मनोज तिवारी उपस्थित थे। मंच पर भारतीय चित्र साधना के अध्यक्ष  बी के कुठियाला और सचिव अतुल गंगवार भी उपस्थित रहे।
५वां चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल का आयोजन २३ से २५ फरवरी २०२४ को हरियाणा के पंचकूला होगा।इसे ४ कैटेगरी में रखा गया है जिनमें डॉक्यूमेंट्री,शार्ट फिल्म्स,चिल्ड्रन फिल्म्स और कैंपस फिल्म्स शामिल है।फेस्टिवल के थीम महिला सशक्तिकरण,रोजगार सृजन,समरसता,पर्यावरण,भविष्य का भारत और बाल चलचित्र में पराक्रमी बच्चे,बाल शिक्षा में नवाचार और नैतिक शिक्षा निर्धारित की गई है ।इनमें प्रविष्टि १ सितम्बर से ३० नवंबर तक की जा सकेगी।विजेताओं को नकद १० लाख की राशि दी जाएगी।

 5वें चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल के पोस्टर का लोकार्पण करने के बाद अभिनेता व सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि आज का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि पोस्टर लांच में आज जितने लोग उपस्थित हैं उतने लोग तो बड़े बड़े अवार्ड फंक्शन में भी नहीं होते ।सिनेमा समाज का दर्पण होता है इसे स्वीकारने में गुरेज नहीं करना चाहिए,रही बात प्रमाणिकता की तो इसके प्रति समाज और फिल्म निर्माता दोनों की जिम्मेदारी है और हम केवल इतिहास को कोस कर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकते हैं बल्कि अपनी प्रतिक्रिया से भी निभा सकते हैं
 भारतीय सिनेमा के बदलते स्वरूप और न्यू कमर्स की चुनौतियों पर निर्माता निर्देशक सतीश कौशिक ने कहा कि मैंने देश से लेकर विदेशों तक में बहुत फ़िल्म फेस्टिवल अटेंड किये हैं लेकिन भारतीय चित्र साधना एकदम अलग है, ये सिर्फ़ फेस्टिवल का मंच नहीं बल्कि चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल एक मक़सद के साथ चल रहा है। ये एक साधना  के  साथ फ़िल्म जगत के नव निर्माण के लिए निरंतर आगे बढ़ रहा है । उनके अनुसार सिनेमा का  पटल सिर्फ़ पैसा कमाने का औज़ार नहीं बल्कि चलचित्र के माध्यम से अपनी सभ्यता और संस्कृति को दिखाने व देश की परम्पराओं, इतिहास , और मूल्यों को बताने का अवसर है। आज पश्चिम के प्रभाव को स्क्रीन पर देख कर दर्शक थक चुके है । सिनेमा जगत में भारतीय मूल्यों की उपेक्षा हुई है क्योंकि पश्चिम का प्रभाव कुछ ज्यादा ही पड़ा है।वास्तविकता ये है कि भारत तो कहानिओं से पटा है हमारी क्षेत्रीय विविधता वैभवता से भरा पड़ा है।