यात्राओं का घमासान

बाल मुकुन्द ओझा

देश में यात्राओं के जरिये लोगों की नब्ज टटोली जा रही है। राजनीति में यात्रा का खास महत्व होता है। देश में कई प्रकार की यात्राएं देखने को मिलती है। यह माना जाता है की सियासी यात्राओं का जनमानस पर व्यापक असर पड़ता है। इससे राजनेताओं की छवि बदलती है।आज़ादी के लिए गाँधी की पैदल यात्रा ने लोगों को जोड़ने में सफलता हासिल की थी। साईकिल यात्रा भी लोकप्रिय हुई है। रथ यात्रा के राजनैतिक उद्देश्य थे। कार और ट्रक पर भी यात्राएं निकाली गई है।

देश के इतिहास में सबसे चर्चित यात्रा स्वाधीनता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी की दांडी यात्रा को माना जाता है। नमक कानून तोड़ने के लिए अहमदाबाद से दांडी तक 241 किमी की पदयात्रा महात्मा गांधी ने 25 दिन में पूरी की। आजादी के बाद 1951 में आचार्य विनोबा भावे और आंध्र प्रदेश में वर्ष 1982 में एनटी रामाराव ने चैतन्य रथम यात्रा निकाली। एनटीआर की 75 हजार किलोमीटर लंबी यात्रा ने प्रदेश के चार चक्कर लगाए जो गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज है। 1983 में की गई चंद्रशेखर की भारत यात्रा की चर्चा आज भी होती है। चंद्रशेखर ने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक कन्याकुमारी से राजघाट तक भारत यात्रा 4260 किलोमीटर की पूरी की थी। 1989 में चुनाव में हार मिलने के बाद राजीव गांधी ने साल 1990 में भारत यात्रा की शुरुआत की थी, नरेंद्र मोदी ने श्गुजरात के लोगों के गौरवश् की अपील करने के लिए सितंबर 2002 में गुजरात गौरव यात्रा शुरू की थी। 2004 में वाईएसआर ने आंध्र प्रदेश में करीब 1600 किलोमीटर की पदयात्रा की और सत्ता पर काबिज हुए। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने जनता से जुड़ने के लिए 2011 के राज्य विधानसभा चुनावों के लिए पश्चिम बंगाल में कई बड़े पदयात्राएं निकालीं। 2013 में चंद्रबाबू नायडू, और 2014 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद वाईएसआर कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने 6 नवंबर, 2017 को 3,648 किलोमीटर की पैदल यात्रा (प्रजा संकल्प यात्रा) शुरू की। 2017 में दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा काफी चर्चित हुई थी। नर्मदा नदी के दोनों किनारे करीब 3,300 किलोमीटर की यात्रा दिग्विजय सिंह ने अपने समर्थकों के साथ 6 महीने में पूरी की थी। मगर सबसे बड़ी यात्रा रथ यात्रा थी जो लालकृष्ण आडवाणी ने निकाली थी। वर्ष 1990 में भाजपा ने राममंदिर निर्माण आंदोलन को तेज करते हुए पूरे देश में भ्रमण करते हुए अयोध्या तक रथयात्रा की घोषणा की। इस यात्रा के सारथी बने लालकृष्ण आडवाणी।

वर्तमान में राहुल गांधी की भारत जो़डो यात्रा अभी अपने परवान पर हैं। उन्होंने कहा मैं नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहा हूं। राहुल गांधी ने कहा कि हमारा देश मोहब्बत का देश है, नफरत का नहीं है। मैं बीजेपी वालों से भी नफरत नहीं करता हूं। उनकी विचारधारा के खिलाफ लड़ता हूं। राहुल की बहुचर्चित यात्रा से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया जोश देखने को मिला है। राहुल गांधी के नेतृत्व में यह यात्रा देश के 12 राज्यों में 3,500 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। हालाँकि विपक्ष के अन्य दलों और नेताओं ने राहुल की यात्रा से अपनी दूरी बनाये रखी। राजस्थान मे बीजेपी ने जन आक्रोश यात्रा निकाल रखी है। इस बीच नीतीश कुमार ने 5 जनवरी से समाधान यात्रा निकाली है जिसे विपक्ष जोड़ो का नाम भी दिया जा रहा है। कांग्रेस ने भी बिहार में हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा शुरु की है। त्रिपुरा में बीजेपी ने स्वाभिमान यात्रा की शुरुआत की है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने सागर से पहाड़ तक नाम से यात्रा शुरु की है। यात्राएं छवि बदलने और बचाने के काम आती है। दरअसल इन सभी यात्राओं का उद्देश्य खुद को और अपनी पार्टी को जनता से जोड़ने का है। इसमें कहाँ तक सफलता मिलती है यह देखने की बात है।

(लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार एवं पत्रकार हैं)