विश्व की प्रमुख डिक्शनरियों द्वारा जारी किए जाने वाले प्रमुख शब्द दुनिया की हकीकत बयां करने के लिए काफी होते हैं। इसको साल के पहले नंबर के एक शब्द से ही नहीं आंका जा सकता बल्कि साल के अन्य शब्दों को भी देखने से साफ हो जाता है कि दुनिया जा किधर रही हैं। लोगों में क्या हलचल है। सकारात्मकता या नकारात्मकता कहां तक पहुंच रही हैं तो भावी के लिए भी संदेश छिपा होता है। साल 2022 के प्रमुख शब्द गैसलाइटिंग हो या पर्माक्राइसिस या कीव हो या पार्टीगेट, कोविड हो या वार्महाउस यह सभी शब्द जो प्रमुख डिक्शनरियों द्वारा साल के शब्दों के रुप में चयनित किए गए हैं लगभग सभी वैश्विक संकट की और इषारा कर रहे हैं। अब ब्रिटेन के अंग्रेजी शब्दकोष कोलिन्स द्वारा इस वर्ष के लिए घोषित वर्ड ऑफ द ईयर पर्माक्राइसिस हो या अमेरिका की डिक्शनरी मेरियम वेबस्टर ने इस साल सबसे अधिक खोजे जाने वाले शब्द के रुप में गैसलाइटिंग, इनसे आज के दुनिया के हालात साफ हो जाते हैं। यह कोई शब्दमात्र नहीं होकर लोगों में अनिश्चितता और असुरक्षा की भावना घर कर गई है उसे दर्शाते हैं। परमाक्राइसिस परमानेंट और क्राइसिस दो शब्दों से बना लगता है। साफ हैै कि परमानेंट के मायने स्थाई है तो क्राइसिस का अर्थ है संकट। इसी तरह से गैसलाइटिंग भी दरअसल व्यक्ति को मानसिक रुप से कुठाग्रस्त और हीनभावना की ओर इंगित करता है। बात यही समाप्त होती तो अधिक चिंतनीय नहीं होता पर दोनों ही डिक्शनरियों द्वारा खोजे गए साल के प्रमुख दस शब्दों में जो शब्द सामने आये हैं वे कमोबेस देश-दुनिया के हालात को व्यक्त करते हुए हालात की गंभीरता को दर्शाते हैं। कहीं दूर दूर तक आशा की झलक दिखाई ही नहीं देती। दुनिया के देश आज जिन हालातों से दो चार हो रहे हैं उसी को यह दर्शाते हैं। बिट्रेन का योरोपीय संघ से अलग होने का फैसला ब्रेक्जिट हो या रुस और यूक्रेन के बीच छह माह से भी अधिक समय से चल रहा युद्ध हो या जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते हालात, दुनिया के देशों के सामने अर्थ व्यवस्था का संकट, दुनिया के अनेक देशों में राजनीतिक अस्थिरता के हालात के कारण इस दशक गंभीर संकट की और इषारा करते हैं। साल 2023 मेें भी इन संकटों से मुक्ति आसान नहीं दिख रही है।
लोगों को लग रहा है कि दुनिया में संकट का दौर जारी है और निकट भविष्य में इसका कोई समाधान भी नहीं दिख रहा है। दरअसल कोरोना के बाद से हालात सामान्य हो ही नहीं पा रहे तो युद्ध और अर्थव्यवस्था का संकट और उससे भी एक कदम आगे जलवायु परिवर्तन के कारण अनचाहे तूफानों का दौर जारी है। समूचे विश्व में निराशा का दौर जारी है। फ्रांसिसी दार्शनिक एडगर मोरिन की माने तो दुनिया इंटरलोकिंग के दौर में जा रही है। लाख प्रयासों के बावजूद कोरोना से पूरी तरह से मुक्ति नहीं मिली है तो अहमता के चलते रुस यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा। ब्रिटेन में ब्रेक्जिट और गलत निर्णयों के कारण संकट देखा जा चुका है और ऋषि सोनक के प्रधानमंत्री बनने के बावजूद अभी हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं। कोरोना के बाद संकट का जो दौर आया उसके बाद भी आतंकवाद में कोई कमी नहीं आई है तो एक दूसरे देशों के प्रति वैमनस्यता भी कम नहीं हो रही हैै। लोगों को लगने लगा है कि दुनिया अब ऐसे संकट के दौर से गुजर रही है जिसका स्थाई समाधान निकट भविष्य में लग नहीं रहा। यह कोई निराश होने की बात नहीं है पर पर्माक्राइसिस हो या गैसलाइटिंग, यही दर्शाता है। कोलिंस द्वारा इस साल सामने लाए गए अन्य शब्दों में कीव जो कि रुस यूक्रेन युद्ध से उभरा है तो पार्टीगेट का भी जमकर प्रयोग हुआ है। इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री बोरिस जान्सन द्वारा जून 20 में कोविड पाबंदियों के बावजूद जन्मदिन की पार्टी करना और उसके बाद के हालातों से पार्टीगेट शब्द चल निकला है। इसी तरह से स्पोर्टसवाकिंग शब्द में प्रमुख दस शब्दों में शुमार है जोकि फुटवाल विश्वकप के माध्यम से या यों कहें कि खेल के माध्यम से वर्चस्व जमाने का प्रयास है। कुछ इसी तरह से वार्मबैंक का चलन भी काफी रहा क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बदलाव इस कदर होने लगा है कि कहीं सर्दी अधिक तो कहीं गर्मी अधिक। उर्जा सकंट के चलते गरीबों को इससे दो चार होना पड़ रहा है। इसी तरह के और शब्दों का चलन अधिक रहा पर खास बात यह रही कि इस दौरान सामने आए दस प्रमुख शब्दों में से निराशा से आशा का संचार करता एक भी शब्द सामने नहीं आया है। इससे स्वतः ही आज की दुनिया के हालात बयां हो जाते हैं। 1938 में जब पहलीबार पैट्रिक हैमिल्टन द्वारा लिखित नाटक गैसलाइटिंग खेला गया होगा या दो साल बाद 1940 पर इस नाटक पर आधारित दो फिल्में प्रदर्शित हुई तब भी हैमिल्टन या किसी और ने यह नहीं सोचा होगा कि एक समय ऐसा भी आएगा जब गैसलाइटिंग सबसे अधिक सर्च किया जाने वाला शब्द बन जाएगा। गैसलाइटिंग कोई गैस जलाने वाला लाइटर नहीं होकर मानसिक व मनोवैज्ञानिक रुप से अंदर तक जला देने वाली क्रियाएं हैं। होना तो यह चाहिए कि कोई व्यक्ति मानसिक या सामाजिक रुप से कमजोर है तो उसे संबल दिया जाए पर होने लगा उल्टा है। 21 वीं सदी में यह सब होना किसी भी तरह से उचित नहीं माना जा सकता। पर प्रतिस्पर्धा का दौर ऐसा चल निकला है कि दूसरे को नीचा दिखाना हमारी आदत में आ गया है। यह सब तो तब है जब अभी हम कोरोना के संकट से पूरी तरह से निजात नहीं पा सके हैं। कोरोना का नया वेरियंट सामने हैं। चीन में हालात बदतर होते जा रहे हैं। यहां तक कि कोरोना ने हमें हमारी हैसियत तो बताने का प्रयास किया पर हम है कि सबकुछ भूल कर वापिस वहीं आ गए हैं। किसी को मनोविज्ञानिक रुप से टार्चर करना या यों कहें कि किसी को मानसिक रुप से कमजोर करना और वह भी अपने हित के लिए, अपने को उंचा दिखाने के लिए या दूसरे को नीचा दिखाने के लिए तो यही हमारी कुठित मानसिकता को ही दर्शाता है। आखिर ऐसा क्या बदलाव आया कि आज पर्माक्राइसिस या गैसलाइटिंग जैसे शब्द प्रमुखता पाते जा रहे हैं। यह कहीं ना कहीं समाज की बदलती मानसिकता को ही यह दर्शाती है। कोई अच्छे और सकारात्मक बदलाव की खोज नहीं हो रही। यह विचारणीय हो जाता है।दुनिया के देशों के शासन कर्ताओं को नई सोच व मंथन के साथ आगे आना होगा ताकि लोगों में विश्वास जगे, निराशा को आशा में बदला जा सके। कुंठा के स्थान पर जीवंतता आ सके। नए साल में इसी सोच और चिंतन के साथ आगे बढ़ना होगा।