आयुर्वेद स्वस्थ जीवन जीने की एक कला है

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को गोवा में कहा कि आयुर्वेद केवल इलाज नहीं है बल्कि यह आरोग्य है, जो हमें जीना सिखाता है। मोदी ने कहा कि दुनिया ने विभिन्न उपचार शैलियों को आजमाया है और वह आयुर्वेद की प्राचीन पद्धति की ओर लौट रही है। उन्होंने कहा कि आयुष उद्योग सात गुना बढ़ा है और यह लगभग डेढ़ लाख करोड़ रूपये का हो गया है। इससे कृषि क्षेत्र को लाभ होगा और रोज़गार के अवसर उपलब्ध होंगे। उन्होंने कहा 30 से अधिक देशों ने आयुर्वेद को एक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में मान्यता दी है। हमें अन्य देशों में भी आयुर्वेद को बढ़ावा देना है। वैश्विक बाजार आगे बढ़ रहा है और हमें औषधीय पौधे लगाकर लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए।
बहुत सी अंग्रेजी दवाइयों के साथ आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा जैसी पद्धतियों में औषधीय पौधों का बहुतायत से प्रयोग हो रहा है। भारत सरकार के ऑल इण्डिया को-ऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन एथ्नो-बायोलॉजी द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में यह बताया गया है की लगभग 8 हजार पेड़-पौधे ऐसे हैं जिनका उपयोग औषधीय गुणों के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में लगभग दो हजार, सिद्धा में लगभग एक हजार और यूनानी में लगभग 750 पौधें ऐसे है जिनका उपयोग विभिन्न दवाओं के निर्माण में किया जाता है।
आज दुनिया में भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का डंका बज रहा है। विश्व के सभी देशों में आयुर्वेद पहुंच गया है। आयुर्वेद न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि समग्र स्वास्थ्य के बारे में बात करता है। आयुर्वेद का जन्म लगभग पांच हजार वर्ष पहले भारत में हुआ था। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी आयुर्वेद को एक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्वीकार किया गया है। आयुर्वेद प्राचीन भारतीय प्राकृतिक और समग्र वैद्य-शास्त्र चिकित्सा पद्धति है। संस्कृत भाषा में आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का विज्ञान। आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति के शरीर में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों मूल तत्त्वों के संतुलन से कोई भी बीमारी नहीं हो सकती, परंतु यदि इनका संतुलन बिगड़ता है, तो बीमारी शरीर पर हावी होने लगती है। अंग्रेजी दवाएं रोग से लड़ने के लिए डिजाइन की जाती हैं, वहीं आयुर्वेदिक औषधियां रोग के विरुद्ध शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती हैं ताकि आपका शरीर खुद उस रोग से लड़ सके। आयुर्वेद के अनुसार कोई भी शारीरिक रोग शरीर की मानसिक स्थिति, त्रिदोष या धातुओं का संतुलन बिगड़ने के कारण होती है। आयुर्वेद चिकित्सक मरीज की रोग प्रतिरोध क्षमता, जीवन शक्ति, पाचन शक्ति, दैनिक दिनचर्या, आहार संबंधी आदतों और यहां तक कि उसकी मानसिक स्थिति की जांच करके रोग निदान करते हैं। आयुर्वेद रोग को जड़ से खत्म करता है। हम कह सकते है आयुर्वेद स्वास्थ्य की देखभाल करने की कारगर प्रणाली है। चरक संहिता के अनुसार आयुर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के विकारों को खत्म करना है। आयुर्वेद का अर्थ ही है आयु को जानने का संपूर्ण विज्ञान। आयुर्वेद सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है।
कोरोना संकट में प्रकृति और ऋषि मुनियों द्वारा अपनायी जाने वाली आयुर्वेद चिकित्सा ने हमारा ध्यान खिंचा है। कोरोना में सर्दी, जुकाम, खांसी, गले में खराश आम बात है। दादी नानी के आयुर्वेद नुस्खों ने इनका उपचार भी हमें बताया है। ये नुस्खे इतने ज्यादा कारगर हैं कि डॉक्टर और मेडिकल साइंस भी उन्हें मानने से मना नहीं करते हैं। हल्दी वाला दूध हो या नमक मिले गरम पानी के गरारे कोरोना के जुकाम और गले दर्द में दोनों ही कारगर इलाज है। अदरक को पानी में उबालकर और फिर शहद के साथ खाया जाए तो यह कफ, गले में खराश और गला खराब होने की दिक्कत से छुटकारा दिला सकती है। अदरक को शहद के साथ खाने से गले में होने वाली सूजन और जलन में भी राहत मिलती है। इसी भांति अजवायन, लोंग, काली मिर्च, तुलसी गिलोय, मलेठीयुक्त पान, शहद, दालचीनी आदि के नुस्खे भी संजीवनी साबित हुए है।
आयुर्वेद और योग भारत द्वारा पूरे मानव समाज और पृथ्वी को दिया अनमोल उपहार है। आयुर्वेद प्राकृतिक एवं समग्र स्वास्थ्य की पुरातन भारतीय पद्धति है। यदि हमें प्रकृति को बचाना है तो पर्यावरण संरक्षण पर जोर देना होगा। औषधीय पेड़-पौधे लगाने होंगे। जिससे पर्यावरण दूषित होने से तो बचेगा ही, साथ ही आयुर्वेद का प्रसार भी होगा।
(लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार हैं)