अब लाइलाज बीमारी नहीं रही कैंसर
कैंसर जागरूकता दिवस-7 नवंबर

भारत में हर साल 7 नवंबर को राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाता है, ताकि इस जानलेवा बीमारी से लड़ने के लिए लोगों को शिक्षित और जागरूक किया जा सके। स्वस्थ जीवन का अधिकार हर मनुष्य को है। आजकल नाना प्रकार की बीमारियों से बच्चे से बुजुर्ग तक पीड़ित है। भागदौड़ भरी ज़िंदगी में आज हर व्यक्ति अच्छी सेहत की बात करता है मगर अधिकांश व्यक्तियों को रोग का या तो समय पर पता नहीं चल पाता है या उसका सही तरह से उपचार नहीं हो पाता है, जिसके कारण हर साल पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की असमय ही अकाल मृत्यु हो जाती है। ऐसी ही एक बीमारी कैंसर है।
देश और दुनिया में लोगों को इस घातक बीमारी से सचेत और जागरूक करने के उद्देश्य से कैंसर जागरूकता दिवस का आयोजन किया जाता है। कैंसर एक नहीं अपितु कई तरह के होते हैं। इनमें मुख कैंसर, स्तन कैंसर, पेट का कैंसर, ब्लड कैंसर, गले का कैंसर, गर्भाशय का कैंसर, अंडाशय का कैंसर, प्रोस्टेट (पौरुष ग्रंथि) कैंसर, मस्तिष्क का कैंसर, लिवर (यकृत) कैंसर, बोन कैंसर और फेफड़ों का कैंसर शामिल है। यहाँ हम मुख कैंसर की बात विशेष रूप से कर रहे है। हमारे देश को मुंह के कैंसर की वैश्विक राजधानी माना जाता है। मानव शरीर में जितने भी प्रकार के कैंसर पनपते हैं, उनमें से 30 प्रतिशत से भी अधिक मुंह के कैंसर होते हैं।
गुटखा, खैनी, तंबाकू सिगरेट, शराब, और पान मसाला मुख रोगों के लिए बेहद घातक और खतरनाक साबित हो रहे है। इनके सेवन से मुंह में जलन, छाले, मुंह के कम खुलने की समस्या आम है। मुंह के छाले यानी माउथ अल्सर यूं तो एक बहुत ही सामान्य परेशानी है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना जानलेवा भी साबित हो सकता है, क्योंकि यह किसी गंभीर बीमारी का लक्षण भी हो सकता है। भारत में बच्चे से बुजुर्ग तक को सरे आम इनका सेवन करते देखा जा सकता है। यह शोक अमीर से गरीब तक सभी आयु वर्ग के लोगों में है। हमारे देश में लाखों लोग आज मुख की विभिन्न बीमारियों से ग्रसित है। यह बीमारी धीरे धीरे कैंसर का रूप ले रही है जिनका इलाज असाध्य हो चला है। आईसीएमआर की रिपोर्ट को देखें तो मुख के कैंसर से मरने वालों की तादाद में हर साल वृद्धि हो रही है जो हमारे लिए बेहद चिंतनीय है। यह स्थिति तो तब है जब अनेक राज्य सरकारों ने अपने यहाँ गुटखा और पान मसाला पर रोक लगा रखी है।
भारत में मुंह के कैंसर के मामले सबसे अधिक देखने को मिलते हैं। यह कैंसर पुरुषों को ज्यादा होता है। मुंह के कैंसर की पहचान सामान्य जांच से हो जाती है। तम्बाकू के गुटके के रूप में खाने से सफेद दाग, मुँह का नहीं खुल पाना तथा कैंसर रोग भी हो सकता है। लगातार गुटखे या तम्बाकू का सेवन आपके दांत को ढीले और कमजोर बना देते हैं बैक्टीरिया दांतों में जगह बना लेते हैं जिससे दांतों का रंग बदलने लगता है और धीरे-धीरे दांत गलने भी लगते हैं। तम्बाकू या गुटखा लगातार खाने वालों की जीभ, जबड़ों और गालों के अंदर सेंसेटिव सफेद पेच बनने लगते हैं और उसी से मुंह में कैंसर की शुरुआत होती है जिसके बाद धीरे-धीरे मुंह का खुलना बंद हो जाता है और मुंह में कैंसर फैल जाता है।
मुँह के कैंसर का अर्थ है मौखिक गुहा (होठों से शुरू होकर पीछे टॉन्सिल तक का हिस्सा) अथवा ओरोफैरिन्कस (गले का अंदरूनी हिस्सा) के ऊतकों में होने वाला कैंसर। जब शरीर के ओरल कैविटी के किसी भी भाग में कैंसर होता है तो इसे ओरल कैंसर कहा जाता है। ओरल कैविटी में होंठ, गाल, लार ग्रंथिया, कोमल व हार्ड तालू, यूवुला, मसूडों, टॉन्सिल, जीभ और जीभ के अंदर का हिस्सा आते हैं। इस कैंसर के होने का कारण ओरल कैविटी के भागों में कोशिकाओं की अनियमित वृद्धि होती है। ओरल कैंसर होने का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। ओरल कैंसर आज हमारे देश की एक प्रमुख समस्या के रुप में बीमारी उभरी है सबसे ज्यादा पुरुषों में पाया जाता है इसका मुख्य कारण पान मसाला, तंबाकू बीड़ी सिगरेट का प्रयोग करना है।
(लेखक पूर्णिमा यूनिवर्सिटी, जयपुर के बीबीए की विभागाध्यक्ष है।)