विश्व पर्यटन में ये है हमारी रंग बिरंगी  बून्दी

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल,  लेखक एवं पत्रकार
कोटा से जयपुर मार्ग पर 35 कि.मी स्थित बूंदी शहर पर्यटन के अनेक स्थल अपने हृदय में समेटे हैं। अरावली पहाडि़यों की गोद में बसा बूंदी राजस्थान का प्राकृतिक सौन्दर्य अद्भुत नजारा लिए है। यहाँ अनेक मंदिर होने से इसे ‘छोटी काशी’ के नाम से विभूषित किया गया है। यह खूबसूरत शहर बूंदी जिले का मुख्यालय है।
       प्राचीन बूंदी रियासत के समय महलों से जुड़ी मजबूत चार दिवारी (परकोटे) से घिरी थी। इसमें पश्चिम में भैरोपोल, दक्षिण में चौगान गेट, पूर्व में पाटन पोल एवं उत्तर में शुक्ल बावड़ी गेट बने हैं।वर्षा एवं शरद ऋतु में विशेषकर बूंदी नगर का दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है जब पर्वत हरियाली चादर ओढ लेते हैं, झील और तालाब पानी से लबालब भर जाते है, महल, छतरियों एवं मंदिरों का नया रूप नजर आने लगता है।
     बूंदी के आस पास के क्षेत्र में पहाडि़यों से गिरते झरनों पर पर्यटकों की चहल पहल बढ़ जाती है। नगर के मध्य स्थित आजाद पार्क एवं जैत सागर के किनारे बना रमणिक उद्यान की छंटा लुभावनी हो जाती है। रात्रि में बिजली की रोशनी में जगमगाते शहर की खूबसूरती तो कहना ही क्या।
      आज शहर ने परकोटे से बाहर निकल कर विस्तृत आकार लिया है। बूंदी में मोरड़ी की छतरी, छोटे महाराज की हवेली, कवि सूर्यमल्ल मिश्रण की हवेली, बडे महाराज की हवेली, मीरगेट स्कूल में बने पुराने चित्र एवं भालसिंह की बावड़ी भी दर्शनीय हैं। महाराव उम्मेदसिंह द्वारा 1770 ई. में निर्मित हनुमान जी की छतरी, चौथमाताजी का मंदिर, बाणगंगा में केदारेश्वर महादेव एवं अन्य देव मंदिर, हंसादेवी माता जी का मंदिर, कल्याण जी का मंदिर एवं लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर विशेष रूप से दर्शनीय हैं।
       तारागढ़बूंदी शहर के उत्तर में पहाड़ी पर बना तारागढ़ किला बूंदी के सिर पर ताज जैसा लगता है। यह किला बूंदी शहर से 600 फीट तथा समुद्रतल से 1400 फीट ऊँचाई पर है। राव रतन सिंह ने 1354 ईस्वी में इसका निर्माण करवाया था। दुर्ग की बाहरी दीवारों का निर्माण 18 वीं सदी के पूर्वाद्ध में जयपुर द्वारा नियुक्त गर्वनर दलेल सिंह ने करवाया था। तिहरे परकोटे में बना दुर्ग करीब साढे़ चार किलोमीटर परिधि में है।यह दुर्ग कई बार अनेक शत्रुओं अल्लाउद्दीन खिलजी, मेवाड़ शासक क्षेत्रसिंह, मालवा के महमूद खिलजी, जयपुर शासक सवाई जयसिंह, कोटा नरेश भीमसिंह तथा दुर्जनशाल सिंह के अधिकार में चला गया परन्तु हर बार बूंदी के हाड़ा शासकों ने फिर से अपने अधिकार में ले लिया। दुर्ग में भीम बुर्ज, महल, पानी का तालाब, छतरी मंदिर आदि दर्शनीय हैं। जलाशयों में वर्षा जल संग्रहित होता था एवं वर्ष भर पेयजल के काम आता था।
    बून्दी में 120 फीट परिधि वाली 16 खंभों की सूरज छतरी दर्शनीय है। राज प्रसादतारागढ़ दुर्ग के चरण पखारता बूंदी का राजमहल का अपना विशिष्ठ स्थान है। इसके निर्माण में अनेक शासकों का हाथ रहा। चौगान गेट से आगे चल कर महलों में जाते हैं तो महल की चढ़ाई शुरू होने से पहले राजा उम्मेद सिंह के घोड़े हंजा की प्रतिमा नजर आती है। समीप ही जरा सा आगे चलने पर शिव प्रसाद नामक हाथी की प्रतिमा बनी है। इसे महाराज छत्रसाल ने बनवाया था। यहाँ से आगे चलने पर एक के बाद दूसरा दो दरवाजे आते हैं। दूसरे दरवाजे पर 17 वीं शताब्दी में राजा रतनसिंह द्वारा बनवाया युग्म हाथियों के द्वार को हाथी पोल कहा जाता है। इस दरवाजे के दूसरी ओर रतन दौलत दरी खाना है। यहाँ बूंदी शासकों का राजतिलक किया जाता था। इसके आगे चलने पर छत्रमहल चौक के एक भवन में रामसिंह के समय के खगोल एवं ज्योतिष विधा के यंत्र रखे हैं। पास के कक्ष में बने सुन्दर भित्ती चित्र धुमिल हो गये है। छत्रमहल चौक के एक ओर हस्थिशाला बनी है। आगे दरीखाना और दूसरी तरफ रंग विलास है। यहीं सुन्दर उद्यान एवं चित्रशाला तथा अनिरूद्ध महल बने हैं। जिसे उन्होने 1679 ई. में बनवाया था और आगे चल कर इसे जनाना महल बना दिया गया।
       यही बनी चित्रशाला को कलादीर्घा कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यहां सम्पूर्ण दीवारों पर 18 वीं सदी पूर्वाद्ध के बूंदी शैली के चित्रों की ख्याति विश्व स्तर पर है। चित्रों को बचाये रखने के लिए सुरक्षित कर दिया गया है। दिन-रात पुरातत्व विभाग की निगरानी रहती है। गढ़ महल राजपूत शैली का दुर्लभ नमूना है।
       बूंदी में ही बस स्टेण्ड से करीब दो कि.मी. पर पहाडि़यों की गोद में बना जैत सागर अपनी लुभावनी छटा लिए है। पहाड़ी नदी पर बांध बनाकर इसका निर्माण किया गया है। इसके किनारे बना सुख महल एवं सुंदर उद्यान बने हैं। जैत सागर में सैलानियों के लिए बोटिंग की व्यवस्था है। बूंदी के अंतिम मीणा शासक जैता ने इसका निर्माण 14 वीं सदी में करवाया था। सुख महल का निर्माण राजा विष्णुसिंह ने 1773 ई. में करवाया था। सुख महल परिसर ने नया संग्रहालय स्थापित किया गया है। जैत सागर के एक किनारे पर नगर परिषद् द्वारा पहाड़ी पर आकर्षक उद्यान विकसित किया गया है। जैत सागर में जब कमल के फूल अपनी रंगत बिखरते हैं तो शोभा निराली हो जाती है। जैतसागर के समीप बने सुख महल में भूतल पर एक बड़ा और दो छोटे कक्ष है। प्रथम तल पर दो कमरे आमने सामने हैं। छत गुम्बद युक्त, शिखरनुमा हैं। दोनों कक्षों के मध्य जैत सागर की पाल की ओर एक आठ स्तंभों पर आधारित छतरी भी है।
       बूंदी शहर की कलात्मक बावडि़यों एवं कुंडो में राव राजा अनिरूद्ध सिंह की विधवा रानी नाथावत द्वारा 1699 ई. में निर्मित शहर के मध्य स्थित रानी जी की बावड़ी सिरमौर है। बावड़ी में ऊपर से नीचे की ओर जाते हुए करीब 150 सीढि़यों के बाद जल कुण्ड आता है। स्थापत्य, मूर्ति, शिल्प बनावट सीढि़यां मध्य में बना हाथियों का तोरण द्वार, ऊपर बनी छतरियों तथा दीवारों में बने देवी देवताओं की मूर्तियां बावड़ी की विशेषताएं हैं।शहर की दूसरी महत्वपूर्ण बावड़ी गुल्ला जी की कुण्डली आकार की बावड़ी है। इसे गुलाब बावडी भी कहा जाता है। इसके आगे एल आकार की भिस्तियों की बावड़ी, श्याम बावड़ी तथा व्यास बावड़ी भी दर्शनीय हैं। शहर में और भी कई बावडि़यां बनी हैं।नागर सागर कुण्डरानी जी की बावड़ी के समीप ही नागर-सागर नामक दो कुंड अपनी स्थापत्य एवं सीढि़यों की संरचना की दृष्टि से बेजोड़ हैं। यहां संगमरमर की प्राचीन छतरियां बनी हैं तथा आस-पास उद्यान बना है। कुड़ों में गजलक्ष्मी, सरस्वती एवं गणेश आदि धार्मिक मूर्तियां बनी हैं। रामसिंह की रानी चन्द्रभान कंवर ने इन्हें बनवाया था।
       करीब 400 वर्ष प्राचीन सुन्दर नवल सागर शहर के मध्य वार्ड सं. 2 में आकर्षण का केन्द्र है। महल के नीचे बने इस सरोवर से महल एवं तारागढ़ का संयुक्त दृश्य अत्यंत मनभावन लगता है। इससे शहर में जलापूर्ति भी की जाती है।सागर के किनारे बने मंदिर में गजलक्ष्मी की अद्वितीय मूर्ति स्थापित है। इसमें हाथी लक्ष्मी का घटाभिषेक करते नजर आते हैं। देवी के बालों से गिरते पानी को हंस अपनी चोंच में ले रहे हैं। देवी का नीचे का भाग श्रीयंत्र के रूप में है। बताया जाता है कि पुराने समय में तांत्रिकों द्वारा इसकी पूजा की जाती थी। नवल सागर के किनारे पर राजा विष्णु सिंह की रक्षिता सुंदर शोभराज जी ने 18 वीं सदी के उत्तर्राध में सुंदर घाट एवं महलों का निर्माण कराया था। प्रथम मंजिल पर खड़ी मुद्रा में हनुमान जी की प्रतिमा है।
    बुंन्दी में बनी शिकार बुर्ज राजाओं के शिकार के लिए बना सुंदर भवन है। इसे 1770 ई. में महाराव उम्मेद सिंह ने रहने के लिए बनवाया था और वे प्रायः यहाँ विश्राम करने आते थे। बाद में इस भवन को शिकारगाह के रूप में उपयोग में लिया जाने लगा। इसी के पास हनुमान छतरी बनी है। यह कभी खूबसूरत पिकनिक स्थल रहा।
       बूंदी से 9 कि.मी. दूरी पर प्रकृति की गोद में रामेश्वरम् खूबसूरत जगह है। यहांँ 200 फीट से ऊँचाई से गिरता झरना देखना रोमांचक लगता है। यह झरना जहाँ गिरता है वहां शिंवलिंग स्थापित है। यहीं एक गुफा में पांच सौ वर्ष पुराने शिवलिंग की पूजा की जाती है। चट्टान की प्राकृतिक सुंदरता को मध्य गुफा से बाहर यहाँ शिवरात्रि पर मेला भरता है।बूंदी से 15 कि.मी. दूर भीमलत नामक सुंदर झरना अद्वितीय है। बताया जाता है बनवास के दौरान पाण्डव यहाँ आये थे। इस स्थल पर बना शिव मंदिर पूज्य है। बरसात के दिनों में इन दोनों जलप्रपातों पर सैलानियों का जमघट लगा रहता है।फूल सागरबूंदी शहर के उत्तर पश्चिम में करीब 5 कि.मी. दूरी पर फूलसागर दर्शनीय स्थल है। इसके किनारे एक बड़ा पानी का कुण्ड, मध्य में छतरी तथा दो छोटे महल बने है। इस सागर का निर्माण राजा भोज सिंह की उप रानी फूललता द्वारा 17 वीं सदी के पूर्वाद्ध में कराने से उनके नाम पर फूल सागर रख दिया गया। बून्दी उत्सव में विदेशी सैलानियों का जुड़ाव निरन्तर बढ़ रहा हैं।