हे पिता तुम्हें प्रणाम

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जिस प्रकार पूरी दुनिया मां को सम्मान देने के लिए मदर्स डे मनाती मनाया जाता है उसी प्रकार पिता को सम्मान देने के लिए 21 जून को फादर्स डे मनाया जाता है। हमारी सृष्टि सृजन चरित्र निर्माण दाता पिता तुम्हें इन नैनों के सजग सजल से नमन। मन कर्म वचन उदगम भावों के उज्जवल दीपों की अखण्ड ज्योति तुम्हें उस परम पिता परमेश्वर के समान पूजूं। जैसे सूरज ही प्रत्येक्ष देव है। वैसे तुम्हीं हमारे प्रत्येक्ष हो पिता।तुम्हीं से जीवन किरण जैसे दिखने वाले इस संसार में जो दिख रहा है. वो हम तो तेरे भेद को समझ नहीं पाये। तुम्हीं हमारे जीवन की पहली दृष्टि हो जो कि माँ के सयोग से तुम्हारी गोदी का आनंद भाव सृष्टि के जैसे पुष्प भिन्न भिन्न शब्दों भरे नाम से जाने जाते हैं।
संसार के निर्माण की पहली छवि सीढ़ी जो फलतः देखी जाये तो तुम भी पिता विधाता का ही स्वरूप जो कि देखा अपने बुद्बि शील भाव से विशेष रुप में मानव रुपी जीवन की उत्पति का पहला चरण यानि मानव कि बुद्बि कौशल के आलौकिक विचार से होती हैं। जो हर उस ज्ञान को दर्शाता है. जिसमें एक समूह में जीवन बतीत करना। इस आध्यात्मिक विकास की परिभाषा में भौतिक विकास की सत्ता गौण मानी जाती हैं. हे चेतना के विकास में प्रमुख हो जाती है पिता। जो हमारे चरित्र निर्माण दाता पिता। पढ़ाई लिखाई आदि सब कहेंगे जो हर समय एकांकी भाव भरी नजर लगाये रहते थे।जैसे अदर्शय रुप में हमारी हर हरकत देखता हैं।जिससे क ई बार मन के उदगम भाव से पता चलता है वैसे पिता। तुम्हारे डर की घंटी सदा ही हमारे कानों में बजती रहती थी. कि बाबुजी नहीं आ जाये। क्योंकि बचपन में सही गलत का अंदाज नहीं मालूम पड़ता इस अनुभव से मानव का चरित्र निर्माण होता हैं।
श्रद्धा का जीवन दर्शन संसार की पहचान करवाते. सदा यह बतला देते है. कि कोई भी इस जीवन में अपना ऋण नहीं चुका पाता हैं। इस संसार में हर पिता चलता हैथाम के अंगुली इन पथरीली कांटों वाली राहों में कि मेरी संतान कही गलत दिशा में चलकर नस्ट न कर दें जीवन. क्योंकि हर पिता का सपना होता हैं. कि मेरी संतान अच्छे कार्य करें.जिस प्रकार परमात्मा धरती पर जब भेजता है. वह भी यही सोच कर माँ धरा के आँचल में भेजता है। पर संतान सब कुछ भूल जाती है. उसी तरह पिता जो कुछ करता है. वह सब संतान भूल जाती हैं।पर पिता जब गुजर जाता है तो मालूम होता है कि बिना तुम्हारे सभी रास्ते बन जाते अनजान पिता कि याद जाने कहती मेरे बचपन की बात. मेरे तुतलाते बोलो का तुम्ही ने दिया। मेरी बीमारी में अक्सर आँखों के मोती बहा छुपजाते थे। कभी हम सभी भाईबहिन एक साथ रहते कभी दुखी नहीं होते पालन पोषण में हमारे रक्षक सबकुछ करते रहते। हमारे भाग्य विधाता बन ता जिंदगी बताते रहे लेकिन हमने उनका मोल कभी न जाना हम ऐसे थे नादान पिता अपनी आंखों के तारों का आसमान सचमुच खो दिया। सौ जन्मों तक नहीं चुकेगा।