विधायक बिकाऊ है

व्यंग्य

बाल मुकुंद ओझा

आया राम गया राम की तरह आजकल बाड़ाबंदी शब्द बहुत प्रचलित हो रहा है। कभी फसलों को पशुओं से बचाने के लिए किसान अपने खेत में बाड़ाबंदी करते थे। कालांतर में पशुओं का स्थान मानव ने ले लिया। अब मानव रूपी विधायक और सांसदों की बाड़ाबंदी होने लगी। निचले स्तर पर देखें तो पंच, सरपंच और नगर पालिका सदस्य भी बाड़ाबंदी के शिकार होने लगे। बाड़ाबंदी में वैसे बड़े मजे है। फाइव स्टार या सेवन स्टार होटल में खाना पीना और ठहरना सब मुफ्त।
बाड़ाबंदी राजनीतिक नेताओं का शगल है। विशेषकर अपनी सरकार बचाने के लिए यह कार्य किया जाता है। काम में सफल हो जाये तो बल्ले बल्ले। आरोप यहाँ तक लगाया जाता है की विधायकों की कीमत लगायी जा रही थी उससे लोकतंत्र खतरे में पड़ गया था। करोड़ों रुपयों के मोल भाव लग रहे थे। ऐसे में लोकतंत्र बचाना जरुरी था। सवाल यह पैदा होता है की ऐसी नौबत आती ही क्यों है की हमारे कर्णधार नेताओं को बाड़ाबंदी करनी पड़े। साफ है विधायक बिकाऊ हो जाता है। उसे चुनाव जीतने के लिए करोड़ों रूपये चाहिए। उसका जुगाड़ हो जाता है। कहीं बाड़ाबंदी सफल हो जाती है तो कहीं फेल। यानि कहीं लोकतंत्र बच जाता है और कहीं इसकी हत्या हो जाती है।
हमारा लोकतंत्र तो उसी समय शर्मसार हो जाता है जब यह खबरें आती है की विधायक बिकाऊ है। आखिर उनकी ईमानदारी कहाँ चली जाती है जब उसे बाड़ाबंदी में धकेल दिया जाता है। आश्चर्य की बात तो तब होती है जब सरकार ही अपने विधायकों की बाड़ाबंदी करने लग जाती है। मतलब साफ है सरकार को अपने चुनिंदा विधायकों पर ही विश्वास नहीं है। सरकार की नजर में ये खुले में घूमे तो बिक जायेंगे ,इसलिए इनकी बाड़ाबंदी जरूरी है। बताते है बाड़ाबंदी में खुलकर काळे धन का प्रयोग होता है और करोड़ों के खर्चों को लाखों में बताकर काळा को सफेद बनाया जाता है। इस कार्य में कुछ एक्सपर्ट लोगों की मदद ली जाती है।
वर्तमान में राज्य सभा चुनाव को लेकर राजस्थान में बाड़ाबंदी हो रही है। इसकी शुरुवात काँग्रेस ने की। भाजपा भी अब इसका अनुसरण करने जा रही है। राजस्थान में बाड़ाबंदी का इतिहास बहुत पुराना है। 1996 में भैरोंसिंह शेखावत की सरकार बचाने के लिए जनता दल से बगावत कर आए विधायकों की जयपुर में बाड़ाबंदी करवाई गई। इसके बाद बागी विधायकों को भाजपा में शामिल कर शेखावत ने प्रदेश में अपनी सरकार बनाई। राजस्थान में कांग्रेस ने विभिन्न राज्यों में अपनी सरकार बचाने के लिए कई बार बाड़ाबंदी का सहारा लिया था। भाजपा भी हालाँकि इस कार्य में पीछे नहीं रही है। अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के चलते देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र राजस्थान लगता है कि पॉलिटिकल टूरिस्ट की भी पहली पसंद बन गया है। तभी तो बीते वर्षों में जब भी बाड़ाबंदी की नौबत आई तो राजनीतिक दलों को राजस्थान की ही याद आई। वर्ष 2005 से अब तक महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तराखंड, गोवा, गुजरात व मध्यप्रदेश और गुजरात के विधायकों की बाड़ाबंदी राजस्थान में हो चुकी है।