यूँ ही नहीं कहा जाता श्रीगंगानगर धान का कटोरा






इस गुरूद्वारे की नींव वर्ष 1953 में संत फतेह सिंह द्वारा रखी गई। वर्ष 1954 में गुरूद्वारे और लंगर का खर्च चलाने के लिए दो मुरब्बा जमीन क्रय की गई। गुरूद्वारे की पक्की इमारत बनाने का काम 27 फरवरी, 1956 को प्रारंभ हुआ। इस कार्य में हरनाम सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा। क्षेत्र के श्रद्धालुओं ने अपने ट्रैक्टर, ईंटों, सीमेंट और हाथों से सेवा करके निर्माण कार्य में अधिक से अधिक सहयोग किया।
गुरूद्वारा साहिब के मुख्य हाॅल की लम्बाई-चैड़ाई 124 गुणा 99 है। हाॅल में एक समय में हजारों श्रद्धालुओं के बैठने की जगह है। हाॅल के साथ एक बड़ा दीवान हाॅल बनाया गया है, जहां अमावस्या पर दीवान लगता है। गुरूद्वारा साहिब परिसर में एक सुंदर सरोवर बनाया गया है, जिसकी परिक्रमा संगमरमर से बनाई गई है तथा सरोवर की गहराई 12 फुट है। सरोवर में महिला व पुरूषों के स्नान के लिए अलग-अलग घाट की व्यवस्था की गई है। सरोवर में पानी की आवक गंगनहर की सूरतगढ़ वितरिका के माध्यम से होती है।


गुरूद्वारा साहिब पर हर माह की अमावस्या को मेला भरता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस अवसर पर लंगर पकाने की सेवा आसपास के सिख, माताएं, बहनें करती हैं। लंगर के लिए बड़े-बड़े हाॅल बनाए गए हैं, जहां एक समय में काफी संख्या में श्रद्धालु लंगर छकते हैं। इसके अलावा लंगर में गैस भट्टियों का भी प्रबंध किया गया है। संगतों के रात में ठहरने के लिए 120 कमरे बनाए गए हैं। अब चपाती बनाने की मशीन भी लगा दी गई है।
गुरूद्वारा साहिब परिसर में ही एक कक्ष को सचखंड हाॅल का रूप दिया गया है। यहां गुरूद्वारा साहिब की सेवा-पूजा की वस्तुएं रखी गई हैं। परिसर में ही एक संग्रहालय बनाया गया है, जहां सिख गुरूओं, संतों के चित्र प्रदर्शित किए गए हैं।
गुरूद्वारे का प्रबंध एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है, जिसमें 13 सदस्य हैं। इस ट्रस्ट का गठन संत फतेह सिंह ने ही निर्माण के समय किया था। ट्रस्ट द्वारा दो विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है, जिसका समस्त खर्च ट्रस्ट वहन करता है और बच्चों को सभी सुविधाएं निःशुल्क उपलब्ध कराई जाती हैं। एक सिख मिशनरी काॅलेज भी संचालित है। बच्चों को ट्रस्ट की ओर से छात्रवृति भी प्रदान की जाती है। विद्यालय और काॅलेज के सैकड़ों बच्चे देश-विदेश में ग्रंथी और रागी की भूमिका निभा रहे हैं।
डाडा पम्पाराम जी का डेरा
यह पवित्र स्थल क्षेत्र के श्री विजयनगर कस्बे में स्थित है। यहां फाल्गुन माह में डेरा डाडा पम्पाराम जी की समाधि पर प्रतिवर्ष 7 दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में राजस्थान के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के विभिन्न धर्मों के लोग बड़ी आस्था के साथ आते हैं। डाडा पम्पाराम जी का जन्म लगभग 400 वर्षों पूर्व गुरूनानक देव के काल में बीकानेर जिले के कुंभाना गांव में हुआ था। कहा जाता है कि बाबा के अधिकांश भक्त वर्तमान पाकिस्तान से आते थे। उनकी कठिनाई को देखते हुए बाबा के आदेश से उनकी समाधि फोटे बाद (पाकिस्तान) में स्थापित की गई। देश के विभाजन के बाद यह समाधि श्री विजयनगर में स्थापित की गई, तब से यहां प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं।
श्रीगंगानगर क्षेत्र में शीलामाता, भद्रकाली मंदिर, भट्टेवाला पीर बाबा, श्री जगदम्बा अंध विद्यालय, विवके आश्रम, तपोवन मनोविकास विद्यालय तथा अपना घर (वृद्धाश्रम) अनेक फलोद्यान दर्शनीय हैं। विशेष अनुमति प्राप्त कर भारत-पाक की आन्तर्राष्ट्रीय सिमा हिन्दुमल कोट को भी देखा जा सकता है।