कोरोना,मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या रोकथाम शून्य की ओर…….

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल,  लेखक एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार
 ” चिंता चिता समान है।” यह उक्ति हर रोज तनाव व निराशा से उत्पन्न और मौत के मुंह में लेजाती गम्भीर बीमारीरियों को देखते हुए यह उक्ति एकदम सही सिद्ध हो रही है। भागमभाग और हर मिनिट का हिसाब रखती आज की जीवनशैली में  सबसे ज्यादा उभरती समस्या है मानसिक तनाव। हर पल तनाव का बढ़ता क्षण व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। निजी जीवन से शुरू होने वाला यह तनाव वैश्विक समस्या बन गया है। आत्महत्या मानसिक रोगों में सबसे गम्भीर परिणीति है।
ये हैं कारण
       वर्तमान में जब कि पिछले कुछ महीनों से कोरोना की वैश्विक महामारी का भयंकर प्रकोप सामने आया है । बड़े से बड़े ताकतवर देश भी इसके प्रकोप से हिल गये हैं, विश्व में लाखों कोरोना रोगियों की की मौत हो चुकी हैं , लंबे लोक डाउन से गुजरना पड़ा हैं एवं प्रकोप निरन्तर जारी है,जगह-जगह कर्फ्यू लगाने पड़ रहे हैं ,भारत में यद्यपि काफी कुछ खोल दिया गया है पर कोरोना का भय जनमानस पर इस कदर हावी है कि सामान्य दिनचर्या अभी भी सपना बना हुआ है ऐसे में डर,भय,अकेलापन, दिनचर्या के परिवर्तन आदि से अनेक लोगों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। डिप्रेशन का शिकार लोगों  नींद नहीं आने,भूख नहीं लगने,हाथ-पांव कांपने, चक्कर आने, मन नहीं लगने ,अपने आप से बातें करना जैसे अनेक अन्य लक्षणों से ग्रसित होकर लोग मनोचिकित्सकों के पास जा रहे हैं। कई में निराशा के भाव काफी हद तक बढ़ गए हैं। कोरोना कब तक चलेगा,कब खत्म होगा सब कुछ अनिश्चित है। अब तो यही लगता है जन-जन को कोरोना से लम्बी लड़ाई लड़नी होगी। इसी के साथ जीना होगा। ऐसे में बताए हए उपायों को स्वयं अपनाना, धीरज और धैर्य से काम लेकर अपने को मानसिक रोगी बनने से बचाना एवं संक्रमण को फैलने से रोकने में  पहले से ज्यादा जिमेदारी प्रत्येक नागरिक पर आ गई हैं।
   कोरोना से उत्पन्न स्थिति के अतिरिक्त मुझे टॉप करना है, वजन कम करना है,स्मार्ट दिखना है, इंजीनियर बनना है, माता-पिता को दिखाना है कि मैं बच्चा नही हूँ कुछ कर सकता हूं। क्या हालत बना रखी है ? यह मत पहनों, दोस्तों के लिए एक बार लेलों, हमारे साथ रहना है तो फ़ास्ट बनना होगा। जल्दी-जल्दी काम करो,खेलना बंद करो और पढ़ाई शुरू करो। वह दोस्त सही नहीं है उसका साथ छोड़ों, हम तो तुम्हें डॉक्टर ही बनायेगे इस में माता-पिता के झगड़े में विषय का चयन। सामाजिक वातावरण,देश की राजनीति, विश्व समस्याएं, मार-पीट,अभद्रता,कार्य का भार। ये  कुछ ऐसे व्यक्तिगत,मित्रों,पारिवारिक एवं समाज सम्बन्धी कुछ प्रमुख कारण हैं जिनसे अच्छे खासे खेलते जीवन में तनाव,निराशा,अवसाद,मंद बुद्धिता, उत्तेजना उन्माद, विखंडित मानसिकता, यौन विकार, मादक पदार्थो की और अग्रसर, अपराध वृति जैसी मानसिक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं और तनाव व अवसाद में जीते मनुष्य को कोई रास्ता नहीं सूझता और वह आत्मघात अर्थात आत्महत्या जैसे कदम उठाने की और उन्मुख हो जाता है। भृम और उहाँ पोह के तनाव को सहने की क्षमता किशोरों में कम होती हैं वे इसे लंबे समय तक झेल नहीं पाते और अंततः आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला खत्म कर लेते हैं।
             उक्त अनेक कारणों से होने वाली मानसिक बीमारियां एवं आत्मघात की बढ़ती प्रवृति के विभिन्न कारकों एवं इन घटनाओं को रोकने के उपायों पर मैंने चर्चा की मेन्टल हेल्थ में 40 वर्षो से उत्कृष्ट कार्य करने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा धन्यवाद से रिकग्नाइज किये कोटा के  विरिष्ठ मानसिक रोग विशेषज्ञ चिकित्सक एवं  डॉ. मदन लाल अग्रवाल से। उनसे हुए वार्तालाप के प्रमुख  अंशो को ही यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
         मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो मानसिक स्वास्थ्य है अभिप्राय मानसिक बीमारी या रोग का नहीं होना मानसिक रूप से स्वस्थ होने का द्योतक नहीं है वरन जीवन पर्यंत व्यक्ति विभिन्न तनाव की परिस्थितियों में समय के अनुसार व्यवहार में उतार-चढ़ाव रहित जीवन भाव, स्मृति एवं विवेक से सामंजस्य को बनाये रखना ही अच्छे मानसिक स्वास्थ्य का प्रतीक है।
         प्रगतिशील समाज की रचना में व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण घटक हैं क्योंकि व्यक्ति ही परिवार और समाज की प्रमुख इकाई है। खराब शारीरिक स्वास्थ्य जीवन की किसी भी अवस्था में मानव की मनःस्थिति पर दुष्प्रभाव डालता है। इसी प्रकार अवसाद,उत्तेजना,तनाव आदि गम्भीर मानसिक रोगों का परिणाम ह्रदय रोग,कैंसर, डायबिटीज,गठिया एवं अस्थमा जैसे भयानक शारीरिक बीमारियों के कारक बनते हैं।
              विगत दो दशकों में जैविक रासायनिक अनुसंधानों  के सार्थक परिणामों स्वरूप मनोरोग चिकित्सा के क्षेत्र में एक क्रांति का उदय हुआ है तथा आज मरीजों को न केवल लक्षणों से राहत दिलाई जाती हैं अपितु उसके जीवन स्तर को गुणात्मक बनाने का प्रयास भी किया जाता है। मनोरोगी का दवाइयों, बिजली से,मनःचिकित्सा एवं व्यवहार चिकित्सा विधियों से उपचार कर ठीक किया जाता हैं। इस रोग की दवाइयों को डॉ. की सलाह से ही लेना और बंद करना चाहिए। जरूरी होने पर बिजली से इलाज किया जाता है जो किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहुँचता है। मरीज को उसकी स्थिति के अनुसार चार या पांच बार इसीटी देने की जरूत पड़ सकती हैं।इस बारे में यह धरना गलत है कि इसके बाद दवाइयों का असर नहीं होता हैं। मनः चिकित्सा में जब मानसिक रोग का कारण घरेलु या सामाजिक होता है तो उसकी वजह जानने के लिए उसके परिजनों से बात कर हल निकालना पड़ता है। व्यवहार चिकित्सा में रोगी को पिछला व्यवहार ठीक करने की ट्रेनिंग दी जाती है।
वैश्विक समस्या
             विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो विश्व में करीब 450 मिलियन लोग मानसिक विकार से ग्रस्त है। प्रत्येक 4 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार मानसिक रोगी है। इन में 10 से 19 वर्ष आयु के मानसिक विकार से ग्रस्त 16 प्रतिशत रोगी भार है।
         इसी प्रकार आत्महत्या भी एक वैश्विक घटना है और जीवन भर होती है। इस समस्या की गम्भीरता को विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे के तथ्यों की जानकारी देते हुए बताते हैं कि विश्व में प्रति वर्ष करीब 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं जब की आत्महत्या का प्रयास करने वालों की संख्या 20 से 25 गुना ज्यादा है। आत्महत्या की प्रवृति 18 से 29 वर्ष आयु के किशोर-युवाओं में ज्यादा पाई गई है। युवाओं में बढ़ती यह समस्या अधिक गम्भीर है। उच्च आय वाले  देशों में  आत्महत्या का अमेरिका में 10 वां और चीन में 5 वां बड़ा कारण है जबकि 79 प्रतिशत धटनाएं निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। विश्व में प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर रूस में 35%, लिथुआनिया में 31.9%, गुआना में 29.2%, दक्षिणी कोरिया में 26.9%, बेलारूस में 26.2%, ब्रिटेन में 10.1 % तथा सबसे कम केरेबियन के बारबाडोस में 0.8% एवं बारबुडा में 0.5%  है। चीन में महिलाओं में आत्महत्या की प्रवर्ति 44 वर्ष आयु के पुरुषों एवं 15 से 34 वर्ष आयु की महिलाओं में  ज्यादा पाई जाती हैं। तथ्य बताते हैं कि जागरूकता कार्यकर्मो के बावजूद भी हर दूसरे व्यक्ति को अंध विश्वास पर भरोसा है। एक अध्ययन के मुताबिक 44 फीसदी मानसिक रोगी इलाज की जगह तंत्र-मंत्र ,तांत्रिकों,नीम हकीमों का सहारा लेते हैं जबकि 26 फीसदी ऐसे मानसिक रोगी हैं जिन्हें अपने घर से 50 किलोमोटर तक मानसिक चिकित्सक सुविधा उपलब्ध नहीं है। भारत में प्रति 10 लाख पर विगत कुछ वर्षों में आत्महत्या की घटनाएं एक लाख से बढ़ कर 1.33 लाख तक पहुँच गई हैं। यह स्पस्ट करता हैं कि भारत में आत्महत्याओं की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही हैं।आज भी स्वास्थ्य पर होने वाले सकल खर्च में  आजादी के 70 सालों में विशेष बढ़ोतरी नहीं हुई हैं।
ऐसे करें पहचान 
             मानसिक रोग की पहचान के भी उसी तरह कुछ लक्षण होते हैं जैसे अन्य बीमारियों के होते हैं। नींद कम या नहीं आना,सिर दर्द बने रहना या ज्यादा तनाव महसूस करना, अकेले बैठना या आसपास बैठे लोगों में रुचि नहीं लेना, भूख कम लगना या बिल्कुल नहीं लगना,चिड़चिड़ापन, शारीरिक दर्द, बार-बार मूर्छित होना,शरीर अकड़ना, अपने आप से बात करना या किसी भी शारीरिक क्रिया को बारबार दोहराना, किसी प्रकार का शक या वहम होना, स्वयं के मारे जाने का वहम होना, बराबर हाथ धोना,एक ही विचार बारबार आना, मर्दों को नामर्दगी का अहसास होना या सेक्स संबंधी समस्याओं का होना आदि लक्षण होने पर कोई व्यक्ति मानसिक रोगी बन सकता है।
भ्रांतियां दूर करें
       मानसिक रोग और रोगियों के बारे में अनेक भ्रांतियां होने से लोग चिकित्सक को दिखा कर आज भी झाड़फूंक करने वालों, ओझा,स्यानो, भूत-प्रेत दूर करने वालों के अंधविश्वास के  मकड़जाल में उलझे रहते हैं। जब रोगी की स्थिति ठीक होने की जगह और जटिल व गम्भीर हो जाती है तब डॉक्टर के पास दिखाने भागते हैं। ऐसे में मरीज को ठीक होने में काफी समय लग जाता है। अतः मानसिक रोगियों को नीम-हकीम,तांत्रिक,जादू-टोना उतरनेवाले साधु-संतों के चक्कर मे नहीं आना चाहिए। यह रोग किसी देवी-देवता का श्राप नहीं अपितु शरीर की मानसिक स्थिति होती है।यह छुआछूत का रोग नहीं है वरण सामान्य रोग होता है,गम्भीर स्थिति में ही रोगी का व्यवहार अलग होता है। रोगी को दी जाने वाली दवाइयां नुकसानदायक नहीं होती,न ही जिंदगीभर लिनी पड़ती हैं, जैसे-जैसे रोगों स्वस्थ्य होता जाता है दवाइयां भी कम और बाद में बंद हो जाती हैं। मानसिक रोगी कभी काम नहीं कर सकते यह धरना भी गलत है वे पहले की तरह ही काम कर सकते हैं। मंद बुद्धि बच्चें या व्यक्ति पागल नहीं होते हैं और न ही बीमार होते हैं अपितु उनकी बुद्धि सामान्य औसत से कम होती है जिन्हें मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण दे कर काफी हद तक ठीक किया जा सकता है।
हेल्प लाइन कारगर
मानसिक बीमारियों में अत्यधिक तनाव,अवसाद,निराशा की गम्भीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ऐसे लोगों में आत्महत्या करने की प्रबल भावना पाई जाती हैं। आत्महत्या के विचार आने पर उचित परामर्श मिल जाये तो इन्हें रोका जा सकता है। इन धटनाओं को रोकने के लिए कई बड़े शहरों में 24 घण्टे हेल्प लाइन का संचालन किया जा रहा है। राजस्थान के कोटा शहर में कोचिंग स्टूडेस्ट्स में इस प्रवृत्ति की रोकथाम के लिए करीब 10 वर्ष पूर्व जिला प्रशासन द्वारा जन सहयोग से हेल्प लाइन शुरू की गई। डॉ. एम.एल.अग्रवाल निरन्तर इसके अध्यक्ष का कार्यभार सम्भाल रहे हैं। हेल्प लाइन द्वारा अब तक 8045 व्यक्तियों को आत्महत्या के भाव आने, अवसाद-तनाव ग्रस्त, शिक्षा, पारिवारिक,आर्थिक, बेरोजगारी,स्वास्थ्य एवं विविध प्रकार की समस्याओं में परामर्श प्रदान कर राहत प्रदान की गई एवं 355 को आत्महत्या करने से बचाने में सफलता प्राप्त की।
 बचाव के उपाय करें
       कोरोना जैसी विकट स्थिति में तनाव से बचने का एक ही उपाय है कि स्थितियों को स्वीकार करें। हमे याद रखना होगा कि जान है तो जहां हैं। तनाव से बाहर निकलने के उपाय अपनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। बच्चों और बुजुर्गों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। बच्चों के साथ कोरोना वायरस पर चर्चा कर उनके सन्देह दूर करने होंगे और बताना होगा कि बहुत सी बातें अपने नियंत्रण में नहीं होती हैं। मानसिक रोगों से बचाव के लिए अच्छी खुराक और लगातार मेहनत, मानसिक रोगी का विवाह एजे परिवार में हो जहाँ कोई मानसिक रोगी नहीं हो,एक ही प्रकृति के कार्य को लंबे समय तक करने से बचना,काम के साथ-साथ मनोरंजन भी करना, योग,ध्यान का नियमित अभ्यास करना, भगवान में मन लगाना, बच्चों को अच्छा भोजन,प्रेम,स्नेह देना,उनकी बात पर उचित ध्यान देना, उसके सामने आपस में झगड़ा नहीं करना, जितना है उसीमें संतोष करना, धन का अधिक लालच नहीं करना, अच्छे दोस्त बनाये जो अच्छे मार्ग पर ले जाये न कि नशे की ओर धकेलें, मादक पदार्थो का अधिक सेवन नहीं करना  उपाय हैं । इन्हें अपना कर मानसिक रोगी होने से काफी हद तक बचा जा सकता हैं।
मीडिया-जागरूकता
        मानसिक स्वास्थ्य बनाये रखने एवं आत्महत्या और आत्महत्या के प्रयासों को रोकने के लिए जनसंख्या, उप-जनसंख्या और व्यक्तिगत स्तरों पर प्रभावी और साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप लागू किए जा सकते हैं। मीडिया मानसिक बीमारियों एवं आत्महत्या की प्रवृति को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मीडिया को इस पर ध्यान देना होगा कि समाज पर प्रभाव सकारात्मक हो न कि नकारात्मक। मीडिया से दोनों प्रकार के प्रभाव पड़ने की संभावना रहती हैं। किशोरों एवं युवाओं की दृष्टि से माता-पिता एवं अविभावक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।समस्त प्रकार के बड़े संस्थान निरंतर और नियमित परामर्श के लिए मनोरोग विशेषज्ञ सलाहकार नियुक्त कर सकते है विशेषकर कॉलेज,महाविद्यालय एवं कोचिंग संस्थान।मानसिक रोग एवं आत्महत्या की रोक थाम को परम्भ से ही पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा सकता है। मेन्टल हेल्थ प्रमोशन के क्षेत्र में कार्य करने वालों को  मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता के लिए लगातार सेमिनार, रैली,संगोष्टि ,परिचर्चा, विद्यालयों, कॉलेज, शिक्षण संस्थानों, व्यक्ति समूहों में चर्चा,महत्वपूर्ण अवसरों पर प्रदर्शनियां आदि के आयोजन किये जाने चाहिए। सभी वर्गों के मध्य अधिक से अधिक जागरूकता कार्यक्रम अनवरत चलाये जाने की महत्ती आवश्यकता है।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार