पानी से सस्ता तेल, भारत में रेट आसमान पर

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कच्चे तेल की कीमतें कोरोना वायरस महामारी और रूस तथा सऊदी अरब के बीच जारी कीमत कीमत युद्ध के कारण काफी टूट चुकी हैं। लेकिन भारत में तेल की कीमतों में गिरावट के बाद भी उपभोक्ताओं को लाभ नहीं मिलता है, तेल और गैस क्षेत्र भारत के आठ प्रमुख उद्योगों में से एक है और अर्थव्यवस्था के अन्य सभी महत्वपूर्ण वर्गों के लिए निर्णय लेने को प्रभावित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। इसलिए, तेल और गैस के दाम अधिक बढ़ने का अनुमान है। सरकार ने इस क्षेत्र के कई क्षेत्रों में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी है, जिसमें प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम उत्पाद और रिफाइनरियाँ शामिल हैं।
बीते माह न्यूयॉर्क ऑयल मार्केट में तेल की कीमतें इतनी गिरी की कच्चा तेल बोतलबंद पानी से भी सस्ता हो गया। सवाल उठता है कि दुनियाभर में बाजार में कच्चे तेल की कीमत पानी से भी कम हो गई है तो हमें पेट्रोल-डीजल इतना महंगा क्यों मिल रहा है? भारत में पेट्रोलियम पदार्थों की मांग भले ही तेजी से बढ़ी हों, लेकिन उत्पादन पर्याप्त नहीं है। ऐसे में हमें अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करना पड़ता है। जाहिर है कि यदि विदेशी बाजार में यह महंगा होता तो घरेलू बाजार में पेट्रोल—डीजल महंगा होगा और कच्चा तेल सस्ता होगा तो पेट्रोलियम उत्पाद सस्ता होता है तो यह सस्ता होगा। लेकिन अभी ऐसा दिख नहीं रहा है भारत में तेल की कीमत में गिरावट एक तरह से अजीब है – जब वैश्विक कीमतें बढ़ती हैं, तो यह उपभोक्ता को भरना पड़ता है, जिसे खपत किए गए प्रत्येक लीटर ईंधन के लिए अधिक पैसा देना पड़ता है। लेकिन जब रिवर्स होता है और कीमतें नीचे जाती हैं, तो सरकार यह सुनिश्चित करते हुए कि यह अतिरिक्त राजस्व में है, तो अपने पास रख लेती है और उपभोगताओं को कोई छूट नहीं देती।
कच्चे तेल का सस्ता होना, तेल सस्ता होना नहीं-
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा है कि तेल कीमतों को बढ़ाने का निर्णय तंग राजकोषीय स्थिति को देखते हुए लिया गया है और खुदरा कीमतों में उत्तरोत्तर वृद्धि की जा रही है। कच्चे तेल की कीमतें माइनस में जाने का यह मतलब नहीं है कि आज या कल से ही तेल सस्ता हो गया है। दरअसल मई महीने में कच्चे तेल की सप्लाई के लिए जो ठेके दिए जाते हैं वो अब निगेटिव में चला गया है। तेल विक्रेता दुनिया के देशों से तेल खरीदने के लिए कह रहे हैं लेकिन तेल खर्च करने वाले देशों को इसकी जरूरत नहीं है, क्योंकि उनकी अरबों की आबादी घरों में बैठी है लिहाजा वे तेल नहीं खरीद रहे हैं। उनका तेल भंडार भरा हुआ है, पुराना तेल खर्च न होने से उनके पास नया तेल स्टोर करने के लिए जगह नहीं है।
भारत आयात के जरिए पूरी करता है मांग-
भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है। खपत का 85 फीसदी हिस्सा भारत आयात के जरिए पूरा करता है। इसलिए जब भी क्रूड सस्ता होता है, तो भारत को इसका फायदा होता है। तेल सस्ता होने की स्थिति में आयात में कमी नहीं पड़ती लेकिन भारत का बैलेंस ऑफ ट्रेड कम होता है। इससे रुपए को फायदा होता है क्योंकि डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में मजबूती आती है, जिससे महंगाई भी काबू में आ जाती है। सस्ते कच्चे तेल से घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतें कम रहेंगी। भारत की निर्भरता ब्रेंट क्रूड की सप्लाई पर है, न कि डब्लूटीआई ( टेक्सास इंटरमीडिएट ) की। ब्रेंट का दाम अब भी 20 डॉलर के ऊपर बना हुआ है। गिरावट सिर्फ डब्लूटीआई के मई में दिखाई दी, जून अब भी 20 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है। लिहाजा भारत पर अमेरिकी क्रूड के नेगेटिव होने का खास असर नहीं होगा। जब भी कच्चे तेल के भाव में जब एक डॉलर की कमी आती है तो भारत के आयात बिल में करीब 29000 करोड़ डॉलर की कमी आती है। यानी 10 डॉलर की कमी आने से 2 लाख 90 हजार डॉलर की बचत। सरकार को इतनी बचत होगी तो जाहिर है पेट्रोल-डीजल और अन्य फ्यूल के दाम पर असर पड़ेगा।